बुधवार, 29 अप्रैल 2015
Lado-Abhiyan लाडो-अभियान पर केन्द्रत कार्टून्स
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015
मध्यप्रदेश का लाड़ो अभियान : बालविवाह रोकने उठाया सटीक कदम
मध्यप्रदेश शासन के महिला सशक्तिकरण विभाग ने
2013 से लाडो अभियान चलाकर बाल विवाह प्रतिषेध
अधिनियम 2006 को प्रभावी बनाने जो कदम
उठाए उससे इस दिशा में अभियान के द्वितीय चरण अर्थात लाडो
अभियान 2015 के प्रभावी असर दिखाई डे
रहे हैं . लाडो-अभियान एक मिशन मोड में चलाया जाने वाला कार्यक्रम है . इस
कार्यक्रम की प्रणेता महिला सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त श्रीमती कल्पना
श्रीवास्तव का स्वप्न है कि महिलाओं एवं बच्चों सशक्तिकरण के लिए सर्वांगीण
पहल होनी चाहिए . आम जनता को यह महसूस हो कि सामाजिक बदलाव लाने के लिए सरकार के साथ साथ आम नागरिक की ज़िम्मेदारी भी है . इस हेतु योजनाएं अथवा
कार्यक्रमों का जनजन तक पहुँचना आवश्यक होता है .. इसी क्रम में महिला
सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव की सोच लीक
से हटकर नज़र आ रही है . उनकी सोच से स्वागतम लक्ष्मी, लाडो-अभियान , शौर्यादल जैसे कार्यक्रम समाज के सामने आए हैं जो
महिलाओं एवं बच्चों के समग्र कल्याण के लिए सामाजिक पहल की दूरगामी
आइडियोलोजी सूत्रपात करने में सक्षम हैं . मध्य-प्रदेश का लाडो अभियान 2015 एक ऐसा बहुआयामी कांसेप्ट
बन गया है जो भविष्य के लिया एक दिशा सूचक का कार्य करेगा.
2009 में जारी यूनिसेफ की रिपोर्ट से पता चलता है कि -भारत में दुनिया के सापेक्ष 40 प्रतिशत बाल विवाह होते है
तथा 49 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है । लिंगभेद और अशिक्षा का ये सबसे बड़ा
कारण है . राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम
बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है यूनिसेफ
के अनुसार राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाते है .
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार
इस सामाजिक कुरीति को रोकने प्रभावी उपाय एवं ऐतियाती कदम नहीं उठा सकी .
सरकार नें विवाह की आयु का निर्धारण कर कुरीती पर अंकुश लगाने के समुचित
प्रयत्न कर लिए हैं किन्तु सम्पूर्ण रूप से बाल-विवाह रोकने के लिए सामाजिक सोच
में सकारात्मक बदलाव लाने की सर्वाधिक ज़रुरत सदा ही है . भले ही 1978 में संसद द्बारा बाल विवाह निवारण कानून पारित किया गया . इसमे
विवाह की आयु लड़कियों के लिए 18 साल और
लड़कों के लिए 21 साल का निर्धारण
किया गया साथ ही भारत सरकार ने नेशनल प्लान फॉर चिल्ड्रेन 2005 में 2010 तक बाल विवाह को 100 प्रतिशत ख़त्म करने का लक्ष्य रखा था .
कोई भी
क़ानून तब प्रभावशाली हो जाता है जब उस देश के लोग उस क़ानून के महत्व को जानें एवं
समझें . इस हेतु वातावरण निर्माण भारतीय प्रजातांत्रिक संरचना के लिए बेहद आवश्यक
है लाडो-अभियान इसी सोच का परिणाम है .
लाडो अभियान क्या है ....?
समाज में प्रचलित बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति
से बच्चों का मानसिक शारीरिक, बौद्धिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर गहरा एवं नकारात्मक प्रभाव पडता है । बालक एवं
बालिकाओं को उनके अधिकारों से वंचित होना पडता है । मिलेनियम डेवलपमेन्ट गोल जैसे
गरीबी उन्मूलन, प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण लैंगिक
समानता को बढावा देना, बच्चों के जीवन की सुरक्षा, महिला स्वास्थ्य में सुधार आदि को प्राप्त करने के लिए बाल विवाह को
ख़त्म करने की ज़रुरत महसूस की जाती रही है .
पर्याप्त ज्ञान और व्यापक जागरूकता के अभाव में
बाल विवाह की कुरीति बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और
विकास में बाधक बन रही है । बाल विवाह को केवल कानूनी प्रावधानों के माध्यम से
नहीं रोका जा सकता है,वरण इसे
जनजागरूकता और सकारात्मक वातावरण निर्माण कर ही बदला जा सकता है । इसी उददेष्य से
वर्ष 2013 से बाल विवाह को रोकने के कार्य को एक
अभियान का रूप दिया गया ''लाडो अभियान" .
अभियान के अंतर्गत ग्राम तथा वार्ड स्तर पर
कोर ग्रुप के गठन का प्रावधान भी है . जो जिला/ विकासखंड / ग्राम /
वार्ड स्तर पर दायित्व बोध कराने का अवसर देता है . कोरग्रुप एक निगरानी
यूनिट की तरह कार्य करता है .
प्रदेश में बाल विवाह पर अंकुश के लिए
वर्ष 2013 में ये अभियान शुरू किया गया।
श्रीमती
श्रीवास्तव ने इसमें जनता व सरकार की समान भागीदारी सुनिश्चित करने मुहिम चलाई।
जागरूकता
के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के
प्रावधानों का प्रचार-प्रसार किया गया। बाल विवाह रोकने
के लिए इससे बच्चों को मानसिक व शारीरिक रूप से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी
दी गई । बाल विवाह रोकथाम विशेष अवसरों पर चिन्हित क्षेत्रों में ही होता था,लेकिन इस अभियान को पूरे प्रदेश में साल भर चलाया गया। जिले से ले कर ग्राम स्तर तक कोर सदस्य बनाए गए, जिन्होंने लोगों को जागरूक किया । मात्र 1 वर्ष (अप्रैल 2014 से फरवरी 15) में लगभग 52,000 तय बाल विवाह सम्पन्न
होने के पूर्व परामर्श से रोके गए । 1511 बाल विवाह
स्थल पर रोके गए व 41 प्रकरण पुलिस में दर्ज कराए
गए । अभियान के तहत लगभग 1 लाख बच्चों का दाखिला
स्कूल में कराया गया । 22000 स्कूलों में बाल विवाह कानून की जानकारी दी गई । अभियान ने अपने पहले ही चरण में ऐसा वातावरण
निर्माण किया कि समुदाय में बाल-विवाह के प्रति सकारात्मकता की सोच रखने वाले
समुदायों एवं व्यक्तियों में भी आमूल-चूल परिवर्तन के लक्षण परिलक्षित होने लगे
हैं .
सिविल सर्विस दिवस पर मंगलवार 21 अप्रैल 2015 को नई दिल्ली में आयोजित समारोह में
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने श्री जे एन कांसोटिया प्रमुख सचिव, मबावि, संचालनालय महिला सशक्तिकरण की आयुक्त श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव एवं श्रीमती
टिनी पाण्डेय सहायक संचालक महिला सशक्तिकरण एवं अरविन्द सिंह भाल प्रबंधक महिला
वित्त विकास निगम को मेडल व प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया ।
कैसे हुआ लाडो अभियान
असरकारी....?
लाडो-अभियान एवं अन्य कार्यक्रमों के लिए सतत निगरानी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन
में महिला सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त श्रीमती
कल्पना श्रीवास्तव कभी चूक नहीं करतीं . अपने मैदानी
अधिकारियों एवं अमले से सीधे, अथवा वाट्सएप फेसबुक, ट्विटर के ज़रिये जुड़े रहना उनको सलाह देना, सपोर्ट
करना, श्रीमती श्रीवास्तव का मानो कार्यदायित्व सा हो गया है
. वे हर कार्यकारी अधिकारी से व्यक्तिगत रूप से जुड़ जातीं हैं . श्रीमती
श्रीवास्तव एवं उनकी सहयोगिनी टिनी पांडे अभियान को प्रभावकारी बनाने के लिए
अभियान में नवाचार जोड़ने में कतई कोताही नहीं बरततीं । अभियान की तह में जाने पर
समझ में आता है कि इस अभियान को अबतक मिली सफलता
में अभियान का जनोन्मुखी होना है । किसी अभियान अथवा सामाजिक संकल्प के सफल होने का कारण
उसमें “जनोन्मुखी” होने का तत्व की
मौजूदगी ही होता है । जहां एक ओर लाड़ो
अभियान की सफलता के लिए मैदानी अधिकारियों
को नए नए प्रयोगों को शामिल करने की खुली
छूट देकर आशातीत सफलता का सूत्र महिला सशक्तिकरण विभाग ने सहज ही हासिल कर लिया है
वहीं विभाग की किसी भी इकाई को अभियान से अछूता नहीं रहने दिया गया है । जवाहर बाल
भवन एवं अपने सभी छै: संभागीय बालभवनों को कार्यदायित्व सौंपे गए हैं । इस क्रम में जबलपुर बालभवन ने अभियान को प्रभावकारी
बनाने आडियो-विजुअल, प्रचार-सामग्री, नुक्कड़ नाटक , रोसीनियम नाटक,
नृत्य आदि का निर्माण एवं प्रयोग भी आरंभ कर दिया है ।
लाड़ो-अभियान के कारण रुकते
बाल विवाह
सटीक
एवं प्रभावशाली यानी फुल-प्रूफ लाडो अभियान 2015 के प्रारम्भिक चरण अर्थात 21
अप्रैल 2015 से इस आलेख के लिखे जाने तक 605 बाल विवाह रोके जा चुकें हैं ।
सोमवार, 23 मार्च 2015
ग्रीष्मकालीन शिविर के लिए पंजीयन शुरू हुआ
प्रदर्शनकारी व सृजनात्मक कलाओं में दक्ष
बनेंगे बच्चे
जबलपुर 23 मार्च 2015
अपने
बच्चे को प्रदर्शनकारी व सृजनात्मक कलाओं में दक्ष बनाने तथा उसमें खेल-कूद एवं विज्ञान के प्रति दृष्टिकोण का विकास सुनिश्चित करने के इच्छुक अभिभावक
संभागीय बाल भवन में सम्पर्क कर सकते हैं। बाल भवन केसरवानी कालेज के आगे, छोटी मस्जिद के सामने स्थित है और यहां प्रात: 10.30 बजे से शाम 5 बजे तक सम्पर्क किया जा सकता है। बाल भवन
में 5+ से 16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों (बालिकाओं के लिए आयु सीमा 18 वर्ष) को प्रशिक्षण दिया जाता है।
संचालक बाल भवन श्री गिरीश
बिल्लोरे ने बताया कि बाल भवन जबलपुर द्वारा प्रदर्शनकारी एवं सृजनात्मक कलाओं तथा
खेल-कूद आदि के लिए ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों हेतु
पंजीयन आरंभ कर दिए गए हैं। अपने बच्चों को इन प्रशिक्षणों का लाभ दिलाने के इच्छुक
अभिभावक बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र, दो फोटोग्राफ, घर के पते के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड/राशन कार्ड/ड्रायविंग लायसेंस/वोटर आईडी में से कोई एक दस्तावेज
तथा पंजीयन शुल्क साठ रूपए के साथ संचालक बाल भवन से सम्पर्क कर सकते हैं। पंजीयन शुल्क
केवल साठ रूपए है तथा प्रशिक्षण के लिए अन्य कोई शुल्क नहीं लिया जाता। उल्लेखनीय है
कि बच्चों को राष्ट्रीय बालश्री प्रतियोगिता तथा अन्य राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय, संभाग स्तरीय एवं जिला स्तरीय स्पर्धाओं
में भाग लेने के अवसर भी सुलभ कराए जाते हैं।
विशेष श्रेणी के बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं
श्री बिल्लोरे ने जानकारी
दी कि कमिश्नर जबलपुर के निर्देशानुसार इस वर्ष से नेत्रहीन, मूकबधिर, मानसिक रूप से अविकसित, शारीरिक विकलांग और अनाथ बच्चों को प्रदर्शनकारी कलाओं एवं सृजनात्मक कलाओं
व खेल-कूद आदि के प्रशिक्षण के लिए विशेष चयन कार्यक्रम निर्धारित
किया गया है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए शैक्षिक एवं आवासीय संस्थाएं भी आवेदन कर
सकती हैं।
शुक्रवार, 20 मार्च 2015
बाल-भवन जबलपुर एक बहुद्देशीय केंद्र
बच्चों में प्रदर्शनकारी रूपंकर एवं ललित कलाओं के विकास , विज्ञान के प्रति दृष्टिकोण एवं खेल के लिए बच्चों की अभिरुचि के विकास के लिए संभागीय बाल-भवन एक बहुद्देशीय केंद्र के रूप में वर्ष 2007 से गढ़ा फाटक, मुख्यमार्ग केशरवानी महाविद्यालय के आगे संचालित है ।
उद्देश्य :- इन प्रशिक्षणों का उद्देश्य यह है बच्चों में विषय का ज्ञान,
नया नजरिया एवं प्रभावशाली अभिव्यक्ति सम्पुष्ट हो सके ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके। उक्त उद्देश्यों
की पूर्ति हेतु बालभवन जबलपुर में बच्चो के लिए निम्नानुसार प्रशिक्षणसत्र 5+ से 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए चलाए जाते हैं
1. पूर्णकालिक प्रशिक्षण
1. पूर्णकालिक प्रशिक्षण :
बालभवन जबलपुर में नियमित
रूप से बच्चों को छ: तरह के पूर्णकालिक प्रशिक्षण दिये जाते हैं,
जो प्रत्येक दिन दो-दो घंटे के तीन सत्रों में चलता है। बच्चे अपनी
इच्छानुसार किसी भी विधा में किसी भी समय आकर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
संबंधित क्षेत्र के योग्य एवं अनुभवी प्रशिक्षकों द्वारा यह प्रशिक्षण दिया जाता
है । प्रशिक्षण निम्न अनुसार है .
(A) शास्त्रीय नृत्य
5+
से 16 आयुवर्ग के सभी बच्चों को अलग-अलग समूह
में शास्त्रीय नृत्य ( कथक ) का आरंभिक प्रशिक्षण दिया जाता है। यह अनुभाग बच्चों
में विशेष लोकप्रिय है। प्रशिक्षण के साथ-साथ बच्चे तनाव मुक्त होकर नृत्य का
भरपूर आनन्द उठाते हैं ।
खुशी पाल (वर्ष ), वर्ष के लिए राष्ट्रीय
बालश्री एवार्ड प्राप्त हो चुका है ।
(B) शास्त्रीय संगीत
संगीत प्रशिक्षण के लिए बालभवन में सरगम कक्ष है । नाम के अनुरूप यहाँ बच्चे
सरगम की धुन, अलाप, लय और ताल का
प्रशिक्षण पाते हैं। समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों में अपने गायन की प्रस्तुति
भी करते हैं। बालभवन द्वारा बच्चों को
संगीत की डिग्री दिलाने का भी प्रयास किया जाता है । वर्तमान में बालभवन द्वारा एक
“प्रमाण-पत्र कोर्स ” का पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है .
सरगम कक्ष के मास्टर संतलाल पाठक वर्ष के लिए राष्ट्रीय
बालश्री एवार्ड प्राप्त हो चुका है ।
(C) चित्रकला
बालभवन के जिस कक्ष में बच्चे चित्रकला का प्रशिक्षण दिया जाता है उसे 'रंगालय’ के रूप में जाना जाता है । नाम के अनुरूप यहाँ बच्चों का सतरंगा संसार
है। यहाँ विशेष रूप से बच्चे क्रेओन, वाटर
कलर, आयल और पेंसिल द्वारा चित्र बनाकर अपनी रचनात्मकता को
अभिव्यक्त करते हैं। यह बड़े-छोटे सभी बच्चों को बेहद भाता है। 05+ से 16 वर्ष
तक के सभी बच्चे चित्र बनाने और रंग संयोजन को सीखने के लिए बड़े उत्साहित रहते
हैं। अपनी कल्पना से बच्चे पोट्रेट, स्केच व प्राकृतिक दृश्य
बनाने और विषय के आधार पर चित्रकला की तकनीक सीखने का आनन्द उठाते हैं ।
इस कक्ष के दो बच्चों को राष्ट्रीय बालश्री एवार्ड प्राप्त हो
चुके हैं मास्टर रोहित गुप्ता (वर्ष ), , एवं मास्टर शुभम राज अहिरवार (वर्ष
),
(E) सृजनात्मक लेखन
बच्चों को स्वस्थ एवं आनन्दायी वातावरण में सृजनात्मक लेखन
प्रशिक्षण के तहत स्व-अभिव्यक्ति का अवसर तो मिलता ही है साथ ही उनके अन्दर छिपी
हुर्इ रचनात्मक प्रतिभा को पहचान कर उसे आहिस्ते-आहिस्ते तराशा जाता है। लेखन
क्लास में बच्चे अपनी मौलिक रचना कविता, कहानी,
चुटकुले , नाटक आदि लिखते हैं। अपनी लिखी
रचनाओं की बच्चे आपस में समीक्षा करते हैं और एक दूसरे के रचनाओं को बेहतर बनाने
का सुझाव भी देते हैं। प्रशिक्षण के दौरान बच्चों को खेल-खेल में वर्तनी सुधार,
लिखने और बोलने की शैली और सृजनात्मक लेखन के आयामों पर चर्चा और
कार्य-कलाप होता है। समय-समय पर बच्चों द्वारा बाल कवि सम्मेलन की प्रस्तुति होती
है। बच्चे विभिन्न कार्यक्रमों में मंच संचालन भी करते हैं। यह प्रशिक्षण संचालक
द्वारा स्वयम ही दिया जा रहा है .
(F) कम्प्यूटर प्रशिक्षण
बच्चों के कम्प्यूटर प्रशिक्षण हेतु एक कम्प्यूटर कक्ष है। आज के
संदर्भ में कोर्इ भी शिक्षा कम्प्यूटर के बिना अधूरी है। किलकारी में अधिकतम बच्चे
साधनहीन परिवेश से आते हैं अत: बच्चों की सुविधा के अनुसार उन्हें कम्प्यूटर
साक्षरता और अभ्यास का अवसर मिलता है। बच्चों को कम्प्यूटर के आरंभिक ज्ञान से
परिचित करवाकर उन्हें कम्प्यूटर की उपयोगिता को समझने का अवसर प्रदान किया जाता
है।
2. अल्पकालिक प्रशिक्षण :
उक्त प्रशिक्षणों के अतिरिक्त बालभवन में बच्चों के लिए सप्ताह के चुने हुए दिनों में
निर्धारित समय में निम्न तरह के अल्पकालिक प्रशिक्षण भी दिये जाते हैं:
(A) मूर्त्तिकला
इस दीर्घा में बच्चे मिट्टी का काम भी करते हैं। मिट्टी के लौंदे
को अपनी कल्पना से नए-नए रूप देना छोटे बच्चों को बेहद भाता है। इस गतिविधि में
बच्चे को आनन्द तो मिलता ही है साथ ही इसके माध्यम से मस्तिष्क,
हृदय और हाथों का समन्वय होता है जो बच्चों के मानसिक और शारीरिक
विकास में सहयोग करता है। बच्चे मिट्टी के जानवर, मानव
आकृतियाँ, मुख, हाथ-पाँव, दृश्य आदि बनाते हैं ।
(B) हस्तशिल्प
हस्तकला दीर्घा में बच्चे हस्तशिल्प का प्रशिक्षण पाते हैं। बच्चों
को हस्तशिल्प काफी पसंद है। इसमें बच्चे काम में ना आने वाली चीजों जैसे- पुराने
अखबार और पत्रिकाएँ, गत्ते के खाली डब्बे, पुराने
कागज, प्रयोग किए हुए डिब्बे, बल्ब,
बटन, थर्मोकोल, तार,
पत्तियाँ या पेड़ों के तनों से निकली हुर्इ छाल आदि से कल्पना और
उनकी क्षमता के अनुरूप नयी आकृतियाँ बनाना सीखते हैं। पूरी खुली छूट के साथ इन
बेकार पड़ी वस्तुओं से बच्चों द्वारा बनार्इ गर्इ ये कृत्तियाँ अनोखी होती है । बच्चे
पेपरमेसी, क्राफ्ट, टेराकोटा और
प्लास्टर आफ पेरिस के साँचे, वाल हैंगिग, गुलदान, पेन स्टैण्ड आदि कर्इ चीजें बनाना सीखते
हैं।
(C) लोक नृत्य
मध्यप्रदेश विशेषकर महाकौशल अंचल की संस्कृति एवं इतिहास पर आधारित
इस प्रशिक्षण में बच्चों को नियमित रूप से लोक नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है ।
इसमें बच्चों को निम्नानुसार नृत्य शिविरो एवम कार्यशालाओं के माध्यम से
प्रशिक्षित करने का प्रावधान है :-
1. बुंदेली :- राई, बधाई, डिमराई, दिवारी, नौरता, जवारा फाग, सैरा,
2. आदिवासी :-
कर्मा, ददरिया , बैगा,पूजा-परब, भोजली परब, सावन, सैला, रीना,
3. अन्य आंचलिक लोकनृत्य :- मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान,
महाराष्ट्र,भांगडा,
(D) तबला
बालभवन में बच्चों को तबला का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। तबला
सीखते हुए बच्चे गायन में भी संगत देते हैं। फिलहाल बच्चे तबला को आरंभिक तौर पर
बजाना सीख रहे हैं।
(E) गिटार वादन
बच्चों के रुचि को ध्यान में रखते हुए “ बालभवन ’’ द्वारा गिटार बजाने का प्रशिक्षण भी दिया
जा रहा। गिटार वादन में हवार्इयन और स्पैनिश गिटार बजाने का आरंभिक ज्ञान प्रदान
किया जा रहा है।
(F) विज्ञान
बच्चों में वैज्ञानिक नवीकरण, विज्ञान
के प्रयोग, विज्ञान के नवाचार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के
विकास के लिये विज्ञान का प्रशिक्षण दिया जाता है । बालभवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण
के विकास के लिये कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं जिसमें वैज्ञानिक प्रयोगों के
साथ-साथ विभिन्न प्रकार के प्रोजेक्ट, माडल निर्माण, एयरो माडलिंग, पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न
क्रियाकलाप, इलेक्ट्रानिक, खगोल
विज्ञान आदि पर कार्य एवम विमर्श भी बालभवन के कार्यकलापों में शामिल किए गए हैं ।
अन्य लघु पाठ्यक्रम
फोटोग्राफी, बैडमिन्टन, शतरंज, व्हालीबाल, फुटबाल, क्रिकेट
विशेष रूप से बालिका क्रिकेट, कैरम, भारतीय
एवं अन्य मार्शल आर्ट जैसे :- कराटे, तायक्वांडो आदि का प्रशिक्षण
दिया जाता है । इसके साथ ही पाककला, योगाभ्यास, का प्रशिक्षण एवं समसामयिक तीज-त्योहारों पर केन्द्रित कार्यक्रमों, टाक-शो, व्यक्तित्व-विकास, रंगोली, मेंहदी, एवं कैंडिल-मेकिंग, ग्रीटिंग
कार्ड मेकिंग आदि कार्यक्रमों एवं प्रतिष्पर्धाओं
का आयोजन किया जाता है ।
प्रतिभावान बच्चों को मंच प्रदाय करना एवं कराना
बालभवन
जबलपुर द्वारा प्रतिभावान बच्चों को समय समय पर उनकी कलाभिव्यक्ति को जनसामान्य के
बीच लाने की निरंतर कोशिशों के क्रम में आंतरिक एवं अन्य शासकीय, अशासकीय
सामाजिक मंचों पर प्रस्तुति देने का अवसर भी प्रदत्त किया जाता है ।
साथ ही राष्ट्रीय बाल-भवन एवं अन्य बालभवनों द्वारा आयोजित सेमिनार,कार्यशालाओं, में बाल-भवन के बच्चों को अवसर दिया जाता
है ।
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