बुधवार, 30 मार्च 2016

किसी के लिए दिशा सूचक बनने का सुख

                             

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
आज नगर निगम का एक स्वीपर अपने बेहद उत्साही बेटे को बालभवन में लाया तो बेहद खुश हुआ... मन उसने बताया 72% अंक लाने वाले बच्चे की हैण्ड रेटिंग सुधारवानी है . इसे एडमिशन दीजिये . मैंने बताया हम क्रिएटिव राइटिंग की क्लास लगाएंगे फिर क्रिएटिव राइटिंग के बारे में बताया. पिता उदास होकर जाने लगा तो मैंने उसे समझाया -. फिर भी पिता उदास हुआ. उसके मानस में बस सुंदर लिपि सीखने की इच्छा थी. जिससे पढ़ाई में मदद मिलेगी
पिता के मन में पढ़ाई के लिए बेहद आदर्श रुख है इसमें कोई दो मत नहीं परन्तु जीवन केवल किताबी ज्ञान से नहीं चल पाएगा, उस बच्चे को भी वही लैगैसी शिफ्ट हुई थी . बच्चे न कहा – “सर, मैं केवल वो काम करूंगा अध्ययन में सहायक हो ”
मैंने सवाल किया- “क्या बाकी किसी खेलकूद जैसी  एक्टिविटी में हिस्सा लेते हो ..?”
वो- “नहीं, उससे कोई फ़ायदा न होगा पढ़ाई में ”
मैं- “तो कुछ तो करते होगे ”
वो- “हाँ, घर में झाडू पौंछा बरतन आदि साफ़ कर लेता हूँ..”
मैं- “झाडू पौंछा बरतन आदि से जुड़े कोई सवाल कभी किसी एक्जाम में पूछे जाते हैं..?”
वो० “नहीं”
मैं- “तो फिर, क्यों करते हो  सिर्फ एक ही काम ..... जिसका किताबी शिक्षा से ज़्यादा लेना देना नहीं ?”
पिता – “सर, ये ही मैं समझ पाता तो आज दैनिक वेतन भोगी सफाई कर्मी न होता ”
मैंने कहा – “सच है, हर काम को सीखो बिना इस बात की चिंता किये इससे हमें फ़ायदा ही होगा कुछ काम या हुनर ऐसे आने चाहिए जो जीवन में कभी मददगार हो सकते हैं.. जैसे कैसे बोलना है, कैसे दुनिया को देखना और समझना है. फिर उनको बालभवन में सिखाई जाने वाली  हर विधा का परिचय दिया लाभ गिनाए   
 बात सबके लिए महत्वहीन हो सकती है .... पर उस अभिभावक के लिए नहीं जिसे कदाचित  किसी ने न समझाएं हों हुनर क्यों सीखना चाहिए एक ज़बदस्त उत्साह था दौनों में .  पिता ने बच्चे का एडमीशन फ़ार्म लिया और भरा भी . कल से वो बालक आएगा ........ मुझे विश्वास है .  
 मुझे मिला है यह सुख -     किसी के लिए दिशा सूचक बनने का सुख.. आप भी किसी के मार्गदर्शक बनिए


मंगलवार, 29 मार्च 2016

माँ कहती थी आ गौरैया कनकी चांवल खा गौरैया

फुदक चिरैया उड़ गई भैया
माँ कहती थी आ गौरैया
कनकी चांवल खा गौरैया
         उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

पंखे से टकराई थी तो
         काकी चुनका लाई थी  !
दादी ने रुई के फाहे से
बूंदे कुछ टपकाई थी !!
होश में आई जब गौरैया उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

गेंहू चावल ज्वार बाजरा
पापड़- वापड़, अमकरियाँ ,
पलक झपकते चौंच में चुग्गा
भर लेतीं थीं जो चिड़ियाँ !!
चिकचिक हल्ला करतीं  थीं - आँगन आँगन गौरैया ...!!

जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!

हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा  भी  गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
न तो घर में रौनक बाक़ी, न आंगन में गौरैया ...!!

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

सोमवार, 28 मार्च 2016

// सूचना // संभागीय बालभवन में ग्रीष्मकालीन सृजनोत्सव 2016 हेतु पंजीयन प्रारम्भ

           संभागीय बालभवन में ग्रीष्मकालीन  सृजनोत्सव 2016 में इस वर्ष बालभवन द्वारा संगीत-गायन एवं वादन ढोलक, तबला, गिटार, ड्रम, बांसुरी, हार्मोनियन, ,कला- चित्रकला, क्लेमाडलिंग, हस्तकला,  एनीमेशन-ग्राफिक्स,  कराते, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, फुटबाल, बालीवाल, खोखो, योगा, शास्त्रीय-नृत्य- कथक, भरत-नाट्यम, लोकनृत्य- बुन्देली, एवं आदिवासी , राजस्थानी,  अभिनय, क्रिएटिव राइटिंग, पाककला, व्यावहारिक-विज्ञान , के सत्रों के लिए पंजीयन दिनांक 28 मार्च 16 प्रारम्भ  हैं ।
                आयुसीमा :- 5 वर्ष  से 16 वर्ष बालक, तथा  5 वर्ष  से 18 वर्ष तक बालिकाएँ प्रवेश ले सकतीं हैं । प्रवेश शुल्क – मात्र 60 रुपये (साठ रुपए मात्र ) लिया जावेगा । किन्तु प्रशिक्षण हेतु प्रथक से कोई फीस नही ली जावेगी ।    
              15 अप्रैल से 30 जून 2016 तक सत्र संचालित होंगे । जो पाठ्यक्रमानुसार  साप्ताहिक , पाक्षिक,  मासिक, द्विमासिक सत्रों में विभाजित होंगे ।
            अभिभावको से अनुरोध है  कि वे  अपने बच्चे / बच्चों  के  दो फोटो ग्राफ, आधारकार्ड , आदि सहित संचालक, संभागीय बाल गढ़ाफाटक, मेन रोड (केशरवानी कालेज के आगे) संपर्क करें ।   


बुधवार, 16 मार्च 2016

👉Invitation for National Conference for Young Environmentalists🌞


Office of the Director Divisional Balbhavan Jabalpur, Madhya –Pradesh Garha-Fatak Main Road, Jabalpur 
Public Notice 
No. /57/ N.Con/2016                                                                          Jabalpur Date 16 March 2016

National Bal Bhavan organizes a National Conference for Young Environmentalists each year to give them a platform to learn to be environmentally conscious, develop interest in specific issues of environment so as to become caring and responsible citizens of the earth. They also carry forward the messages/information to their native places, which they learn in the conference. This is about organizing the National Young Environmentalist’s Conference of the theme Prakriti Sangrakshak-Guardians of Nature. We are all part of nature and cannot survive without it. More and more people are realizing that the environment is more than just a supplier of cheap and abundant materials. Many are getting involved in nature conservation projects. Some dedicate their fortune, others their time; some even risk their lives. Their aim is the same: to preserve our planet’s biodiversity for the future. These people are Guardians of Nature. Besides humans nature has its own guardians in the form of various animals, birds, insects etc. A delicate network of all sustains nature. The purpose of organizing this conference is to identify our roles in this sustenance. The conference venue this year is Garware Bal Bhavan Aurangabad, Maharashtra.
1. Age Limit :- Age group of the members is 10 to 16 years.
2. The dates of the Conference are from 28th to 30th March 2016. Children to reach Aurangabad on 27th and can leave on 31st of March 2016.
Please contact Assistant Director Balbhavan
09479756905, 0761-2401584 , or mail us balbhavanjbp@gmail.com
Girish Billore
Assistant Director
Balbhavan, Jabalpur

सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

बालभवन जबलपुर


बालभवन जबलपुर 2007 से संचालित है । बालभवन एक स्लम बस्तियो  से घिरे होने के कारण बस्तियों से बच्चों को लाना कठिन था   किन्तु तत्कालीन अधिकारियों एवं स्टाफ की सतत कोशिशों का असर हुआ । आज जबलपुर बालभवन बच्चों के लिए प्रमुख कला साधना केंद्र बन गया है । निरंतर गतिविधियों की वज़ह से इस वर्ष  हमने 855 बच्चों का पंजीकरण  किया ।
बदलता स्वरुप :- मध्य प्रदेश के बालभवनों को अब हम संसाधन केन्द्रों के रूप में आगे ले जाना चाहते है। इस क्रम में 
01 जबलपुर में हमने स्थानीय एवं लोक भाषा के विकास एवं उसका अनुप्रयोग कर प्रदर्शनकारी एवं सृजनात्मक कलाओं शामिल किया ।
02 शासकीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय स्तर से सम्मानित बाल विवाह रोकने जारी अभियान लाडो-अभियान सबला कुपोषण मुक्ति हेतु आंगनवाडी कार्यक्रम के लिए दृश्य एवं श्रव्य सामग्री का निर्माण दो एलबम क्रमश: लाडो मेरी लाडो एवं लाडो पलकें झुकाना नहीं के साथ साथ विभिन्न मुद्दों पर नाटक एवं नुक्कड़ नाटक वेश किये ।
03 बालभवन निराश्रित बच्चों दिव्यांगों एवं बालिकाओं   के लिए अधिक सजग है । हमारी प्राथमिकता वीकर सेक्शन है । 
04 बालभवन में जबलपुर की नामचीन हस्तियों का आगमन पर टॉक शो आयोजित किये ।
05 स्पिक मैके द्वारा  कलाकारों के प्रायोजित कार्यक्रम सबसे पहले बालभवन जबलपुर में ही होते हैं ।
06 समकालीन परिस्थियों को देखते हुए बालिकाओ को मार्शल आर्ट का लगातार निःशुल्क प्रशिक्षण श्री नरेंद्र गुप्ता ने दिया जिससे 100 से अधिक बच्चे लाभान्वित हुए ।
07 बालभवन का सरोकार राज्य एवं केंद्र के  कार्यकमों  अन्य ऐसी योजनाओं से भी है जो महिलाओं एवं बच्चों के लिए आवश्यक है ।
     बालभवन जबलपुर की गायिका ईशिता विश्वकर्मा को लाडो अभियान का प्रदेश में ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया है ।
08 बालभवन ने वर्ष भर  प्रतिमाह विभिन्न विषयों मुद्दों पर प्रतियोगिताऐं गतिविधियों का आयोजन किया है । 
      10 से अधिक् पूर्व छात्र हमारे नियमित सहयोगी हैं । 
09 रंगो की उड़ान नाम से एक कला प्रदर्शनी 22 एवं 23   दिसम्बर 15 में किया । 
10 बालभवन जबलपुर की गतिविधियों से प्रभावित स्थानीय संचार माध्यम प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का पूरा सपोर्ट मिल रहा है । 
11 माननीय पालक मंत्री जी की अध्यक्षता में माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी एवं एक अन्य माननीय  सदस्य श्री सुशील शुक्ला  जी  ने   गतिविधियों से प्रेरित होकर  भूमि आवंटन प्रस्तावित किया जिसे  जिला योजना समिति ने एक मत से अनुमोदित किया ।
बालभवन जबलपुर सहित सभी बालभवनों को प्रदेश की मान मंत्री महिला बाल विकास प्रमुख सचिव जी एवं आयुक्त महिला सशक्तिकरण का समर्थन मार्गदर्शन एवं सपोर्ट मिल रहा है।
बालभवन जबलपुर का अपना ब्लॉग www.kilkari.blogspot.in  फेसबुक खाता 
balbhavan jabalpur , एवं पेज  यूट्यूब balbhavan jabalpur चैनल ट्विटर हैंडल @balbhavanjab  है ।  जिससे हमारी गतिविधियों को हम तुरन्त प्रकाशित कर पाते हैं । । बालभवन की अपनी सिग्नेचर ट्यून है 
आकाशवाणी जबलपुर में हमारे बच्चों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलती है ।
बालभवन एक बड़े सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थान प्राप्त कर रहा है 

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

खिलती कलियाँ : श्रीमती लावण्या दीपक शाह


सत्यम-शिवम-सुंदरम गीत के रचनाकार पंडित नरेंद्र शर्मा की पुत्री श्रीमती लावण्या दीपक शाह  ने मेल के जरिये बालभवन के लिए भेजी ये रचना इस वर्ष ग्रीष्मकालीन नाट्य शिविर का प्रथम प्रकल्प (प्रोजेक्ट) होगा 
 
नमस्ते गिरीश भाई 
यह आपकी बच्चों की पत्रिका के लिए भेज रही हूँ। 
मिल जाने पर सूचित कीजियेगा। 
आशा है आप परिवार सहित मज़े में हैं। 
- लावण्या 

खिलती कलियाँ : 
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यवनिका उठते गीत संगीत से शुभारम्भ : बच्चों के समवेत स्वर :
 " हम फूल हैं, हम फूल हैं
    हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ ) 
     आओ....सब आओ , सब मिल कर गाओ
      इस जीवन में कुछ बन कर, इस देश का मान  बढाओ 
          आओ , आओ आओ आओ ....
             है देश हमारा प्यारा , इसे खुशहाल बनाओ 
              कुछ हैं पिछड़े , कुछ भूखे , इनका माथा सहलाओ ..
                आओ , आओ आओ आओ .... 
है काम बड़ा अब हमको, है आगे बढ़ते जाना 
बीती है समय की आंधी , फिर बाग़ नया लगाओ 
आओ , आओ आओ आओ ....
है भारत मेरा प्यारा, हम हैं तुझ पे बलिहारी 
यह भूमि है स्वर्ग से प्यारी , इसे स्वर्ग से मधुर बनाओ 
आओ , आओ आओ आओ ....
 हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ ) " 
सूत्रधार : बच्चों आज हम ज्ञान की विज्ञान की और आनंद और उमंग से भरी बातें करेंगें
           क्या आप सब तैयार हो हमारे संग एक लम्बे सफ़र के लिए
           भई, जर होंशियार हो जाओ ! वो  देखो , चाचा मस्ताना आ रहे हैं ! 
चाचा मस्ताना :
"  आहा ! मेरे प्यारे बच्चों नमस्ते !
  मैं हूँ आपका चाचा मस्ताना ! आप सब का हमसफ़र  और दोस्त ! 
 मुझे बच्चों के संग रहना बहुत अच्छा लगता है ! मैं हमेशा 'मस्त' माने खुश रहता हूँ  इसलिए मेरा नाम है " मस्ताना " ! 
आप सब मुस्कुराते रहीये , खुश रहीये ...हां हां ऐसे  ही !  तकलीफों से, मुसीबतों से  गभराना कैसा ? हम सदा , निडर रहें और आगे बढें ! आप सब हमारे प्यारे भारत देश की ' खिलती कलियाँ ' हों ! रंगबिरंगी फूलों सी कोमल  आपकी मुस्कान है !  आप सब को यूं मुस्कुराता हुआ देख कर मुझे बड़ी  प्रसन्नता हो रही है ! 
एक बालक : चाचा मस्ताना, चचा नेहरू अपने  सुफेदकोट में लाल गुलाब का फूल                      लगाते थे ना
चाचा मस्ताना : अरे शाबाश ! खूब याद किया राकेश ! चाचा नेहरू को !
                     बिलकुल सही उन्हें बच्चे बड़े ही प्रिय थे ! वे भारत को खुशहाल ,
                      आबाद देखना  चाहते थे और गांधी बापू तो बच्चों के संग
                        बच्चा हो कर खेलने लग जाते थे ! 
                      तब गांधी बापू  कुछ समय  के लिए अंग्रेजों को भी भूल जाते थे 
                    जिनसे आज़ादी हासिल करवाने का बड़ा काम किया बापू ने  ... 
कन्याओं के स्वर : " भरा समुन्दर, गोपी चंदर, बोल मेरी मछली , कितना पानी
एक कन्या उत्तर देते कहती है : "  इतना पानी ..इतना पानी " ..
 आहा ! यहां मछली रानी आ गयी ..
   " मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है ,
      हाथ लगाओ तो डर जायेगी, बाहर निकालो तो मर जायेगी ! " 
 ( हाहाहा ...बच्चे तालियाँ बजा कर, किलकारियां लेते हुए ,  खूब हँसते हैं ....) 
चाचा मस्ताना : 
   " बच्चों पानी से एक कहानी याद आ रही है.  सुनोगे
एक समय की बात है।  एक थे महा पुरुष " मनु " भारत भूमि  पर  प्राचीन काल था
मनु महाराज, ' कृतमाला ' नदी में स्नान कर रहे थे।  उन्होंने ज्यूं ही पानी में हाथ डाला कि एक सुन्दर सी ,  छोटी सी, प्यारी सी  चमकते हुए रंगोंवाली एक मछली उनके हाथों में आ गयी !  उस रंगीन मछली को देखकर मनु महाराज  बड़े प्रसन्न हुए ! वे  उसे आपने महल में ले आये और एक कांच के बड़े से बर्तन में मछली को साफ़ जल भरवाकर उस में रख दिया और मछली तैरने  लगी तो उसे देख सभी बड़े प्रसन्न हुए।  
 पर जानते हो आगे क्या हुआ ? वह मछली तो भई ,  दिन दूनी , रात चौगुनी बढ़ती ही चली गयी !
तब मनु महाराज ने उस मछली को बर्तन से निकालकर , अपने महल के पास फैले एक  सुंदर सरोवर में रखा।  pr ये क्या !  वहां भी  वह मछली खूब बड़ी सी हो गई और वह  बढ़ती  चली गयी ! तो पुन: मछली को सरोवर से हटाकर उनके महल से दूर बहती हुई नदी में ले जाया गया। दो दिन बीते और मछली और भी बड़ी हो गई !  फिर तो वह नदी भी छोटी पड़ गयी तो मनु महाराज सेवकों की सहायता से मछली को सागर किनारे  ले आये !
बच्चों , उस चमत्कारी मछली की पूँछ और शरीर अब अतिशय विशाल हो गया था ! जानते हो बच्चों , ये मछली स्वयं भगवान महाविष्णु थे जो मत्स्य अवतार लेकर धरती पर अच्छे लोगों की रक्षा करने आये थे ! उन्होंने मनु राजा से कहा 
' आप का मन पवित्र है। मैं आपकी रक्षा करने आया हूँ। आप जगत के हर प्रकार के प्राणियों के जोड़े जैसे २ मोर, २ गैया, २ बंदर , २ भालू, २ शेरों को लेकर एक बड़े नौका पे  सवार हो जाइए। नौका को मेरे शरीर से बाँध लें।  धरती पे अब प्रलय वर्षा होगी।  आपकी नौका और उसमे सवार सारे प्राणी सुरक्षित रहेंगें। मैं आप सभी की रक्षा करूंगा। " मनु महाराज ने भगवान की आज्ञा का पालन किया। 
संत महात्मा महाराज मनु  ने मत्स्य के पीछे अपनी नौका बांध दी और धरती पर खूब वर्षा हुई बाढ़  आ गयी सारे प्रदेश डूबने लगे परंतु मनु महाराज की नाव को मत्स्य भगवान् की कृपा से , रक्षा का छत्र मिला और वे बच गये और उनकी नाव में सवार कयी तरह के प्राणी भी जीवित रहे ! 
एक बच्चा : सारी दुनिया डूब गयी ! हाय राम ! 
एक लडकी : मैं नहीं डूबूँगी ! मैं तो मेरे पापा के संग स्वीमींग करती हूँ ....
चाचा मस्ताना : अरे वाह ! बच्चों आप सब भी तैरना अवश्य सीखना , बड़े काम का है और व्यायाम भी है ! 
बच्चे समवेत : हां हां हम भी तेरा सीखेँगेँ ..फिर हम नहीं डूबेंगें !    
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों ये बतलाओ ,
                   पानी  पे झिलमिलाते सितारे देखे हैं आप ने
कुछ बच्चे : जी हां चाचा मस्ताना , हमें ' तारे ' बहोत पसंद हैं ! 
एक बालक " मैं गाऊँ चाचा ? मेरे माँ ये गीत गातीं हैं  ...
" अले लल्ला लल्ला लोरी , दूध की कटोरी , दूध में पतासा , मुन्नी करे तमासा "  चन्दा मामा दूर के , पूए पकाए भुर के, आप खाओ थाली में, मुन्ने को दें प्याली में " 
कुछ बालक : जगमग जगमग करते तारे, कितने सुन्दर कितने प्यारे ! 
                किसने सूरज चाँद बनाए ?  किसने काली रात बनायी
                किसने  सारा जगत बनाया ? किसने ? बोलो किसने
( मंच के परदे पे निहारिकाएं, तारा मंडल और ग्रहों, उप ग्रहों को घूमता हुआ द्रश्य दीर्घा पट दीखलायी देता है )
 " आओ , प्यारे तारे आओ, आकर मीठे सपन सजाओ,
 जगमग जगमग करते जाओ , हमको अपना गीत सुनाओ " 
एक बड़ा सा प्रकाशमय तारा आकर रूकता है :
"  बच्चों क्या आप मेरी कहानी सुनोगे
मैं उत्तर दिशा में स्थिर रहता हूँ , मैं ' ध्रुव तारक ' हूँ !  
एक बालक : हां मेरी स्कुल में सिखलाया था - आप तो " नोर्थ - स्टार " हो ! है ना
ध्रुव तारा : मुझे सब जानते हैं , मुझी से उत्तर दिशा को पहचानते हैं !
               मेरी कहानी सुनाऊँ
समवेत बच्चे : हां हां , सुनाईयेना ....
सूत्रधार का स्वर :
" एक समय की बात है , एक थे राजा जिनका नाम था ' उत्तानपाद ' जिनकी २ रानियाँ थीं !  एक थीं ' सुरुचि ' और दूसरी थीं ' सुनीति ' ' ध्रुव ' सुनीति के पुत्र थे और उत्तम सुरुचि के !  राजा उत्तानपाद , उत्तम को बहुत प्यार करते उसे गोदी में बैठालते पर ध्रुव को  ऐसा नहीं करते जिससे बालक ध्रुव के मन को दुःख पहुंचताथा।  
एक दिन की बात है।   राज सिंहासन पे माहराज उत्तानपाद , उत्तम को गोद में लेकर बैठे थे तो बालक ध्रुव भी वहां आया। 
ध्रुव : ' पिताजी ...पिताजी , मुझे भी बैठना है मुझे भी गोदी ले लो ना ! ध्रुव ने बड़े प्यार से अनुरोध किया। 
राजा उत्तानपाद : रूक  जाओ  ध्रुव ..देखो अभी तुम्हारा छोटा भैया यहां बैठा है ...
                       राजा ने समझाते हुए ध्रुव से कहा . 
रानी सुरूचि :  " ध्रुव ! तुम बड़े हठी हो ! चलो भागो यहां से ...परेशान मत करो ...' फिर धीमे से वो बोली . 
 ' अपने पिता जी की गोदी में बैठने के लिए तुम्हे नया जन्म लेना पडेगा ..हूंह ....'     
ये कड़वी बात को बालक ध्रुव ने सुन लिया और वह रूढ़ कर वहां से दूर चल दिया और जाते जाते फफक कर रोने लगा। 
अब ध्रुव अपनी माँ , रानी सुनीति के पास पहुंचा जो महाविष्णु की आराधना - पूजा करते आँखें मूंदें हाथ जोड़े हुए महाविष्णु की सुन्दर प्रतिमा के समक्ष बैठीं हुईं  थीं।  
अपने पुत्र की रूलाई के स्वर से माता सुनीति का ध्यान भंग हो गया।  उन्होंने ध्रुव को बाहों में भर लिया और माथा चुम लिया और माँ उसे प्यार करने लगीं। 
ध्रुव रोते  हुए :
  "  माँ, माँ ...पिताजी मुझसे प्यार नहीं करते ! ...आज उन्होंने मुझे गोदी में नहीं बिठलाया , वे सिर्फ भैया को प्यार करते रहे 
माँ सुनीति : " मेरे बेटे , ईश्वर तुम्हे प्रेम करते हैं  साधारण मनुष्यों के स्नेह से ईश्वर के प्रेम की क्या तुलना होगी बेटे ! शांत हो जा ! "
माता सुनीति ने अपने पुत्र ध्रुव को महाविष्णु की प्रतिमा की ओर सम्मुख करते हुए बहुत स स्नेह जतलाया और कहा ' ये ईश्वर हैं बेटे , इन्हें  प्रणाम करो
ध्रुव : ' माँ , मैं महाविष्णु से पूछना चाहता हूँ , क्या वे मुझे प्रेम करते हैं ? मैं जा रहा हूँ तपस्या करूंगा और प्रभू के दर्शन करूंगा !
सुनीति : ' अरे रूक जा मेरे लाल ! बेटे ध्रुव ! तू अबोध बालक है ! किस प्रकार ऐसी कड़ी तपस्या कर पायेगा .. रूक जाओ पुत्र ! देखो यूं , हठ ना करो ...मैं तुम से प्रेम करती हूँ ...सच ! अब मान भी  जा बेटे !
माँ ने लाख समझाया परंतु बालक ध्रुव ने एक ना मानी और महाविष्णु के दर्शन करने का प्रण करते हुए घोर तपस्या करने गहन वन में बालक ध्रुव चल दिया।
तपस्या करते महाविष्णु का नाम बार बार जपते हुए ध्रुव ने लंबा समय व्यतीत किया जिससे स्वयं ईश्वर महाविष्णु बालक ध्रुव की तस्या और लग्न देख कर वे ध्रुव  के समक्ष एक दिन साक्षात प्रकट हो गये  और मुस्कुराते हुए महाविष्णु ने ध्रुव के माथे पर अपना हाथ रख दिया और प्यार से ध्रुव का माथा सहलाया।  
महाविष्णु :' पुत्र ध्रुव ! आँखें खोलो ..मैं आया हूँ और तुम मुझे,  सर्वाधिक प्रिय हो ! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई है मांगो क्या चाहते हो ?' 
ध्रुव ने प्रभू के कँवल जैसे सुन्दर व दिव्य चरण थाम कर अश्रू पूरित स्वर से कहा
' हे प्रभो , मैं आपके पास रहना चाहता हूँ
महाविष्णु : ' तथास्तु पुत्र ! अब तुम्हारा स्थान उत्तर दिशा को प्रकाशित करते हुए, मेरे समीप सदैव  अचल रहेगा, तुम अमर रहोगे मेरे पुत्र ध्रुव !
चाचा मस्ताना : तो बच्चों, इस तरह उत्तर दिशा में " राजकुमार ध्रुव " तारक बन कर इस तरह स्थिर हो गये और आज भी वहीं हैं ! 
एक बालक : " चाचा जी , तब ध्रुव कितने यर्ज़  ( साल ) का था ?  " 
चाचा मस्ताना : अरे बेटे तपस्या करते हुए ध्रुव की उम्र थी बस पाँच साल की जब उसने इतनी कठोर तपस्या की थी ! अगर वह ५ साल का अबोध बालक ऐसी कड़ी तपस्या कर सकता है तो बताओ , स्कूल का होम - वर्क क्या भला कोई कठिन काम है
आप सब अपना रोज का , स्वाध्याय = मतलब होम - वर्क , नियमित रूप से किया करो तब खूब तरक्की करोगे  और उसी से एक दिन बहुत बड़े इंसान बनोगे। तो बच्चों आप  मन लगाकर अपना काम करना। 
मेरे बच्चों ...सुनो
                    ' मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम
                      परबत की छाती को फोड़ , ऊपर जो है धारा आती ,
                       बाधाओं से लड़नेवाली, वह जीवन झरना कहलाती 
                       कलकल करती रहती हरदम , कभी नहीं करती आराम  
                       सात समुन्दर को कर पार , जो आता लेकर आलोक ,
                       उस सूरज को किसी मोड़ पर, अन्धकार न सकता रोक !
                       आता लेकर सुबह सुहानी , जाता हमें दे कर मीठी शाम
                        कितनी छोटी ये चींटी रानी , पर हैं बडी लगन की पक्कीं,
                        हो गर्मी सर्दी , बरखा हर दिन चलती रहती जीवन चक्की 
                        उनके काम के आगे भारी भरकम हाथी हो जाता नाकाम ! 
                        मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम .... " 
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों अब बतलाओ, आपको कौन से खेल पसंद हैं  ?
                    बबलू     ..आप बताओ . 
बबलू : ' मुझे तो लुका छिपी सबसे अच्छी गेम लगती हैं ! 
चाचा : खूब कही बबलू जी ! हम भी खूब खेला करते थे पर अब तो चाची , हमें पकड कर ' आऊट ' कर देतीं हैं ! 
अच्छा अब आगे सुनो, एक दिन एक बहादुर बच्चे को उसके दुष्ट पिता ने  चोरी - छिपे   भगवान की पूजा करते हुए देख लिया था। 
कुछ बच्चे : कौन था वो बालक चाचा जी
मस्ताना : एक समय की बात सुनो, एक था राक्षस - उसका नाम था  हिरण्यकश्यपु ! वह दुष्ट बड़ा ही बलशाली था।  वह बड़ा घमंडी था।  अपने बाहुबल के कारण वह मनमानी करने लगा।  भगवान के नाम स्मरण से वह चिढ जाता और उस दुराचारी ने पूजा - पाठ ही बंद करवाने का  हुक्म दे दिया ! वह दुष्ट और घमंडी कहने लगा 
' मुझे प्रणाम करो ! ईश्वर कोई नहीं हैं बस मेरा ही सब ध्यान धरो " 
एक बालक : मेरी मम्मी उसकी बात कभी नहीं मानतीं 
                 वो तो रोज कृष्ण जी की पूजा करतीं हैं ! 
दूसरा बालक : मेरी मम्मी गिरजाघर जातीं हैं मोमबतियां जलातीं हैं 
तीसरा बालक : मेरी अम्मी रोजाना नमाज पढ़तीं  हैं ....
चौथा बालक :  हम गुरूद्वारे जाकर " वाहे गुरु दा खालसा जपते हैं जी ! " 
पांचवा बालक : मेरी मम्मी पापा और मैं ,
                    ' अगियारी ' जाते हैं  अग्नि देव की पूजा करते हैं।  
चाचा मस्ताना : बच्चों, रास्ते अलग अलग हैं पर भगवान एक हैं 
                   यूं  समझ लो एक सुंदर बाग़ है जिस बाग़ के बीचों बीच एक 
                  सुंदर पानी का फव्वारा है।  अलग अलग रास्तों से चलकर हम सब 
                  वहां फव्वारे के पास पहुँचते हैं।  पानी पीते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं।  हाँ अब कहो , ' पानी ' तो एक सा  ही रहेगा न ?  जिस किसी रूप में आप सब को परम पिता ईश्वर पसंद हों उन्हें पूजो।  ईश्वर ही हमें सत्य का रास्ता दिखलाते हैं।  उसी सत्य के रास्ते पे चलना सीखना मेरे बच्चों  !  
बच्चे : हां चाचा जी , फिर आगे क्या हुआ ? कहानी तो अधूरी रह गयी -- 
चाचा मस्ताना : हां तो उस दुष्ट राक्ष्स  के घर, एक सुंदर , नन्हा सा, कोमल - सा ,
 भोला भाला,  बालक ' प्रहलाद ' पैदा हुआ जो जन्म से ही सदा  हरिनाम हरि हरि जपा करता था और ईश्वर का नाम लिया करता ! 
  ' बालक प्रहलाद ' की भक्ति से उसके पिता ' हिरण्यकश्यपु ' नाराज होते रहे। उस निर्दयी ने अपने ही फूल से कोमल बालक को , पहाडी से नीचे फिंकवा दिया पर प्रभू ने प्रहलाद की रक्षा की और प्रहलाद बच गया ! 
             " जाको राखे सांईया, मारी सके न कोई " ये सच हुआ ! 
कुछ बच्चे : कैसा दुष्ट था ये राक्षस ! हाय ! 
चाचा मस्ताना : अब तो बच्चों, उस दुष्ट राक्षस का क्रोध बढ़ गया।  उसने अपनी बहन प्रहलाद की बुआ ' होलिका ' को बुलवाने सेवकों को भेज दिया। वो आयी ! इसे प्रभू से वरदान मिला था कि, अग्नि से वह नहीं  जलेगी। तो होलिका , प्रहलाद को गोदी में लेकर आग के भीतर जाकर  बैठ गयी ! पर आश्चर्य ! प्रहलाद का बाल भी बांका में हुआ और यही  होलिका धू - धू करती हुई आग की प्रचंड लपटों में जल कर भस्म हो गयी ! इस दारूण घटना को देखकर , भगवान जी को भी क्रोध आया 
                       शेर का मुख धरे , आधे सिंह और नीचे बलवान पुरुष का रूप लिए ,
                       भगवान नरसिंह हिरण्यकस्यप के राजमहल के एक खम्भे से बाहर 
                       निकले और जोर से चिंघाड़े ..तो दसों दिशाएं भी भय  से कांपने लगीं 
भगवान नरसिंह : ' हे पापी  हिरण्यकस्यप ! अब तेरा अंत काल आ गया है ! ' और तीखे नुकीले नाखूनों से , नरसिंह भगवान ने उस गंदे राक्षस को मार दिया !
 तब , प्रहलाद को नरसिंह भगवान ने अपना असली स्वरूप दिखलाया। 
 वे ' महाविष्णु ' स्वरूप में चतुर्भुज रूप में  निर्मल , मधुर स्मित लिए प्रकट हुए  और उन्होंने प्रहलाद को ' राजा ' बना कर सिंहासन पर बैठाल  दिया। 
समवेत बच्चे : हे  ! हम भी राजा बनेंगें ....हम भी राजा बनेंगें ....
सूत्रधार : चाचा मस्ताना बच्चों को लेकर एक उड़ने वाली कालीन पे जा खड़े हुए तो वह उड़ने लगी और अब वह भारत से आगे पश्चिम दिशा में उड़ चली।  
चाचा : अरे ! ये हम कहाँ आ पहुंचे ? बताओ बच्चों , हम कहां हैं ?  
बच्चे : ( नीचे झांकते हुए ) ये तो अरबस्तान लग रहा है चाचा जी 
घूँघरूओं की , दिलरुबा की और मुरली जैसे सुरीले वाध्य यन्त्रों के स्वर सुनायी दीये और बच्चों ने देखा कि, रेत ही रेत बिछी हुई थी और ऊंटों के काफिले गुजर रहे थे।  खजूर के पेड़ों से कहीं कहीं हरियाली भी थी जहां चश्मों का पानी बह कर नन्ही झील बनी हुई थी। 
चाचा : बच्चों, यहीं पर हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था उन्होंने इंसानियत को इस्लाम का पाक पैगाम दिया था और कुराने शरीफ भी यहीं की सरज़मीन से आयी है. वे फ़रिश्ते थे जिनके पैगाम ने हज़ारों लोगों को अमन चैन का रास्ता दीखलाया !
' अय खुदा.. . तू है कहां, हम तेरे बंदें हैं
ये आसमां तेरा है सारा , ये नूर तेरा है  -
 अय खुदा ...अय खुदा ...
अय खुदा हम तेरे दामन में हैं पले
तेरी बदौलत , हम सभी , तेरा नाम लेकर चले 
अय खुदा ....अय खुदा  ...." 
एक बालक : मैं ईद के चाँद को देख कर खुश होता हूँ बड़े अब्बू को सलाम करता हूँ   मौलवी चाचा के साथ इबादत करता हूँ ! 
मौलवी : शाबाश मेरे बच्चे ..खुश रहो ...फूलो फलो ...
सूत्रधार : अरे ये चाचा आगे बढ़ते तेजी से कहाँ चल दीये
अब कौन देस पहुंचे जनाब ?
चाचा : ये लो हम आ पहुंचे ' येरूस्शालेम ! इसा की भूमि ! यहीं वे पैदा हुए थे 
ज़ोन, तुम  बतलाओ , कहो ...कहो , शरमाओ नहीं ...
ज़ोन : ईसा मसीह मुझे बहुत प्यारे लगते हैं। उन्हें सलीब पर देख मेरी आँखें भर आतीं हैं।  ईसा मसीह , माता मरीयम के बेटे थे।  ईसू ने भाईचारे व प्रेम का पाठ पढ़ाया था हमारी ' बाईबल ' में बहुत सी सुंदर कहानियां हैं।  
     सुनोगे एक कथा ? लो सुनो 
      ' एक बार , एक बीमार आदमी , सडक पर , थक कर गिर पडा ! वहां से एक सेठ गुजर रहे थे उन्होंने इस बीमार को देखा पर उन्हें दया नहीं आयी और वे चले गये 
        इसी तरह कयी सारे लोग आये और किसी ने भी मदद नहीं की और सब चले गये।  कुछ देर बाद, वहां से एक गरीब आदमी गुजरा।  वह बीमार के नजदीक आया। 
उसे सहारा देकर बैठाया , पानी पिलाया और अपनी रोटी तोडकर उसे खीलायी।  फिर उस बीमार के घावों को साफकर , पट्टी भी बाँध दी तब वह बीमार स्वस्थ लगने लगा और उठ कर खड़ा हो गया ! 
      लोग चकित होकर देखने लगे तो वहां  प्रकाश की किरणें छाने लगीं और वही              बीमार आदमी खुद , भगवान बन गये ! उस गरीब आदमी का हाथ पकड़ कर वे उसे अपने संग ' स्वर्ग - हेवन ' में ले गये 
चाचा : अरे वाह ज़ोन बड़ी उम्दा कहानी सुनायी तुमने ! इस कथा को  " ध गुड समारीटन " कहा है धर्म ग्रन्थ बाईबल में !
 तो बच्चों इस कथा से हमें ये सबक मिलता है कि , हमेशा हमसे जो भी बन पड़े , हर किसी जरूरतमंद की सहायता  करें - जो हमसे कमजोर है उन पर दया भाव रखें ..
सुनो
         ' मिलजुल कर हम काम करें तो, कोई काम कठिन नहीं रहता 
            एक दूजे का हाथ बंटाएं तो कोई मुश्किल काम नहीं रहता ! 
           क्यों बच्चों, सही कह रहा हूँ ना
एक लडकी : गुरप्रीत , क्या इस राखी पे मैं तुम्हें राखी बाँध सकती हूँ
गुरप्रीत : हां भं जरूर बाँधना ! मैं तेरी रक्षा करूंगा ...
             मेरी लाडली बहना के लिए जान भी  कुरबान है ..
लडकी : ना ना मेरा वीर , मेरा भईया , सौ साल जीये  ...खूब मज़े करे 
             मेरा भाई बड़ा बलशाली है भईया ...भईया ....
             है बहन बांधती राखी जिसको , वही उसका सच्चा भाई 
             हर मुश्किल में आकर सहलाता, वही है मेरा प्यारा भाई
             भैया मेरे , मेरे गहना , देखूं मैं तुझे हरदम यूं  मेरे अंगना   
             आया सावन झूला लेकर , भैया घर तेरे , मेरे सूना  रे अंगना
बच्चे : झूला हमें कितना प्यारा लगता है जिस बच्चे ने झूला नहीं झूला हो उसका कैसा बचपन ! 
चाचा : झूला झूलते हमें न भूल जाना ! 
बच्चे : नहीं चाचा , हम आपके दोस्त हैं - आपको कभी नहीं भूलेंगें न ही छोड़ेंगें -- 
चाचा " बेहराम ,बेटे , थक गये हो क्या ? तुम भी कुछ बोलो न ..
बेहराम : मैं हूँ पारसी ..भारत हमारे पडदादा ईरान से आये थे और भारत में घुलमिल गये। पारसी लोग गुजरात प्रांत के ' संजाण ' नामके बंदरगाह पे वे, उतरे थे। 
एक छोटी बच्ची : बंदर ? कहाँ है बंदर
चाचा : अरे छुटकी ! बंदरगाह का मतलब है जहां बड़ी बड़ी नाव किनारे आतीं हैं - 
तुतलाकर : मैं बोट में एक बाल पानी में घूमने गयी थी ...
दूसरी : हां ...ऐसे ही एक बोट आयी थी उसकी कहानी बेहराम सुना रहा है अब सुनो 
बेहराम : ' संजाण के राजा ने दूध से भरा कटोरा , पारसी भाईयों के पास भेजा मतलब  था कि मेरा नगर इस लबालब भरे  हुए कटोरे की तरह लोगों से भरा हुआ है  इस में जगह ही नहीं ! तब हमारे गुणी दादाओं ने उसी दूध से भरे कटोरे में थोड़ी चीनी मिला दी !  मतलब उनका जवाब था कि, ' हम दूध में शक्कर  घुल जाती है उस तरह , घुलमिल कर रहेंगें। '
एक बच्चा : देखूं क्या तू भी शक्कर जैसा मीठा है क्या बेहराम ? काटूं तुझे
चाचा : अरे भाई अब हल्ला गुल्ला मत शुरू कर देना - बेहराम शाबाश बेटे - शाबाश 
 एक थे बालक अष्टावक्र !  नहीं सुना उनका नाम ? वे थे एक ऋषि के पुत्र ! अष्टावक्र के  पिता बड़े ही विद्वान और महात्मा थे।  अब अष्टावक्र का नाम ऐसे क्यूं रखा गया था पता है क्या ? नहीं ? कोई बात नहीं।  मैं बतलाता हूँ क्योंकि , उस कुमार का शरीर आठ जगह से वक्र माने टेढा मेढ़ा था ! पाँव, हाथ, कमर, गरदन, मूंह वगैरह ..कयी लोगों को इसी तरह बीमारी के  कारण ऐसे हो जाता है !
बच्चे : हाय बेचारा अष्टावक्र ! 
चाचा : न न ...वह बेचारा नहीं अष्टावक्र परम ज्ञानी ऋषि कुमार था। 
 एक दिन महाराज जनक  के राज दरबार  में अष्टावक्र आ पहुंचा ।  उसे देख कर पहले तो सब हंसने लगे।  कुछ बुरे और शैतान लोगों ने अष्टावक्र का मज़ाक भी उड़ाया पर बच्चों अष्टावक्र शांत ही  रहा।  फिर उसने ऐसी ज्ञान , विज्ञान की बातें सुनाईं तो सभा में जितने भी  लोग जमा हुए थे सब सन्न रह गये ! बड़े बड़े पंडितों को बात करते हुए अष्टावक्र के पूछे प्रश्नों के उत्तर नहें मालूम थे। तब शर्मिंदा होकर बड़े लोगों ने , जनक राजा के दरबार में बैठे बड़े बड़े पंडितों ने सब ने अपनी  हार मान ली और अपने अपने कान पकड़े और जनक राजा ने और सभी ने उठकर  अष्टावक्र को आदर सहित सर झुकाकर प्रणाम किया और उस वीर ज्ञानी बालक का बहुत सन्मान किया। 
           तो बच्चों, किसी के आँख न हो, कान न हो, हाथ, पाँव न हों या किसी के शरीर  के अवयवों में कमी को , कोई कमजोरी हो उनका कभी मज़ाक नहीं करना!
 किसी की कमज़ोरी का मज़ाक उड़ाना   बहुत बुरी बात है !  कयी फूल खिलने से पहले मुरझा जाते हैं ..समझे ना
चाचा : गांधी बापू किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे सब के साथ एक सा व्यवहार किया करते थे। किसी का काम ऊंचा नहीं किसी का नीचा नहीं ! 
तो बच्चों कोइ उंच नहैं कोइ नीच नहीं है !
एक लडकी : चाचा जी , मैं ' फ्लोरेंस नाईटिंगेल " की तरह नर्स बनना  चाहती हूँ और मेरे देश के सैनिकों को घाव लगेगा तो मैं उनकी सेवा करूंगी। 
सुनिए ये गीत ..
              " चाह नहीं  मैं , सुरबाला के घनों में गूंथा जाऊं
                 चाह नहीं प्रेमी माला में बींध प्यारी को ललचाऊँ 
                 मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फेंक 
                 मातृभूमि पर शीश चढाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक 
                      जिस पथ जाएँ वीर अनेक ...." 
एक लडका : चाचा मेरे बापू , खेती करते हैं.  वे  एक किसान हैं।  मैं भी किसान बनूंगा 
               " एय किसान गाये जा, प्यारे हल चलाये जा , आज धूप तेज है
                 पर तुझे खबर कहाँ ? चल रही है लू चले, तुझको उसका डर कहाँ
                  एय किसान गाये जा....गाये जा....   गाये जा....   गाये जा....   " 
चाचा : बच्चों हमारा राष्ट्र गीत रवीन्द्रनाथ टैगौर ने लिखा है एक बार जब वे तुम्हारी 
          तरह छोटे थे तब जिद्द करने लगे कि ' वो जिस पेन से लिखेंगें उस में नीली 
          स्याही नहीं बल्के, फूलों का रस भरा जाएगा ! उनके चाचा जी ने बच्चे का मन 
          रखते हुए ऐसा ही किया।  फूलों से रस निकाला गया और पेन में भरा गया पर 
          अरे , धत्त तेरे की ...फूलों के रस से तो  कुछ लिखा ही न गया !   
बच्चे : जन गण मन अधिनायक जय हे ये राष्ट्र - गीत उन्हीं ने  बड़े होकर लिखा है न ? पर  चाचा जी अभी हमारी बातें ख़त्म नहीं हुई अभी ये गीत हम नहीं गाएंगें हम
              तो  आप से और कहानियां सुनना चाहते हैं चाचा मस्ताना --  कहीये ना - 
चाचा मस्ताना : बच्चों समय भागा जा रहा है।  अब ये आख़िरी कहानी सुनाता हूँ।  भारत देश का नाम कैसे पडा जानते हो ? नहीं ? तो ध्यान से सुनो -- 
                    एक थे राजा दुष्यंत उनकी पत्नी थीं शकुन्तला उन्हीं का बालक था वीर 
                      ' भरत ' वह बचपन में, सिंहों के साथ खेला करता था  हमारे भारत
                       देश में , गंगा, यमुना , नर्मदा , गोदावरी , कावेरी , कृष्णा जैसी 
                      महान नदियाँ हैं ! उन्नत शिखर उठाये हिमालय सी परबत मालिका 
                      हैं  और सह्याद्री , सतपुडा और विन्ध्याचल से परबत हैं !
              यहीं श्री रामश्री कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान अवतरित हुए हैं और उन्हीं सा               मधुर बचपन हमारे देश के बच्चों का हो !
              हमारे भारत देश की हर माता बड़े प्यार , दुलार से फूलों की तरह सम्हाल कर               अपने शिशुओं  को पालती पोसतीं हैं !
                   सच बच्चों , हमारे धन्य भाग्य है कि इस भारत - वर्ष में हम 
                   साथ साथ मिलजुल कर स्वतन्त्र भारत में रहते हैं
                 बच्चों हमें भारत को  एक सशक्त और गौरवशाली देश बनाना  है
                 हम भारत माँ की सदैव सेवा करें !
                 हम भारत को अब कदापि पराधीन न होने देंगें ! आगे बढेंगें,
                 हम  मिलजुल कर  बड़े बड़े काम करेंगें ।
              ऐसे काम करना कि तुम्हारे माँ पिता का सर ऊंचा हो जाये ! 
        समवेत स्वरों में गीत :
      " तुम में हिम्मत है पहाड़ों की , तुम में ताकत है हवाओं की 
                तुम मीठी बातें बोलोगे, जग को प्यार से जीतोगे 
                यह भारत अपना देश है , तुम भारत का  नया सवेरा हो 
भारत के स्त्री एवं पुरुष : हम तो पीछे रह जायेंगें
                                तुम को आगे जाना होगा 
                              आगे बढना यह नारा है,
                              भारत हमको प्यारा है 
                               जगती के भू मंडल पर
                             ये दमकता हुआ सितारा है 
                                 हम भारतीय ! हम भारतीय  !
                                हैं भारतीय हम भारती ! 
                                 मातृभूमि के चरणों में
                                 कोटि वंदन हमारा है !
 - Lavanya


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