रविवार, 21 फ़रवरी 2016

खिलती कलियाँ : श्रीमती लावण्या दीपक शाह


सत्यम-शिवम-सुंदरम गीत के रचनाकार पंडित नरेंद्र शर्मा की पुत्री श्रीमती लावण्या दीपक शाह  ने मेल के जरिये बालभवन के लिए भेजी ये रचना इस वर्ष ग्रीष्मकालीन नाट्य शिविर का प्रथम प्रकल्प (प्रोजेक्ट) होगा 
 
नमस्ते गिरीश भाई 
यह आपकी बच्चों की पत्रिका के लिए भेज रही हूँ। 
मिल जाने पर सूचित कीजियेगा। 
आशा है आप परिवार सहित मज़े में हैं। 
- लावण्या 

खिलती कलियाँ : 
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यवनिका उठते गीत संगीत से शुभारम्भ : बच्चों के समवेत स्वर :
 " हम फूल हैं, हम फूल हैं
    हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ ) 
     आओ....सब आओ , सब मिल कर गाओ
      इस जीवन में कुछ बन कर, इस देश का मान  बढाओ 
          आओ , आओ आओ आओ ....
             है देश हमारा प्यारा , इसे खुशहाल बनाओ 
              कुछ हैं पिछड़े , कुछ भूखे , इनका माथा सहलाओ ..
                आओ , आओ आओ आओ .... 
है काम बड़ा अब हमको, है आगे बढ़ते जाना 
बीती है समय की आंधी , फिर बाग़ नया लगाओ 
आओ , आओ आओ आओ ....
है भारत मेरा प्यारा, हम हैं तुझ पे बलिहारी 
यह भूमि है स्वर्ग से प्यारी , इसे स्वर्ग से मधुर बनाओ 
आओ , आओ आओ आओ ....
 हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ ) " 
सूत्रधार : बच्चों आज हम ज्ञान की विज्ञान की और आनंद और उमंग से भरी बातें करेंगें
           क्या आप सब तैयार हो हमारे संग एक लम्बे सफ़र के लिए
           भई, जर होंशियार हो जाओ ! वो  देखो , चाचा मस्ताना आ रहे हैं ! 
चाचा मस्ताना :
"  आहा ! मेरे प्यारे बच्चों नमस्ते !
  मैं हूँ आपका चाचा मस्ताना ! आप सब का हमसफ़र  और दोस्त ! 
 मुझे बच्चों के संग रहना बहुत अच्छा लगता है ! मैं हमेशा 'मस्त' माने खुश रहता हूँ  इसलिए मेरा नाम है " मस्ताना " ! 
आप सब मुस्कुराते रहीये , खुश रहीये ...हां हां ऐसे  ही !  तकलीफों से, मुसीबतों से  गभराना कैसा ? हम सदा , निडर रहें और आगे बढें ! आप सब हमारे प्यारे भारत देश की ' खिलती कलियाँ ' हों ! रंगबिरंगी फूलों सी कोमल  आपकी मुस्कान है !  आप सब को यूं मुस्कुराता हुआ देख कर मुझे बड़ी  प्रसन्नता हो रही है ! 
एक बालक : चाचा मस्ताना, चचा नेहरू अपने  सुफेदकोट में लाल गुलाब का फूल                      लगाते थे ना
चाचा मस्ताना : अरे शाबाश ! खूब याद किया राकेश ! चाचा नेहरू को !
                     बिलकुल सही उन्हें बच्चे बड़े ही प्रिय थे ! वे भारत को खुशहाल ,
                      आबाद देखना  चाहते थे और गांधी बापू तो बच्चों के संग
                        बच्चा हो कर खेलने लग जाते थे ! 
                      तब गांधी बापू  कुछ समय  के लिए अंग्रेजों को भी भूल जाते थे 
                    जिनसे आज़ादी हासिल करवाने का बड़ा काम किया बापू ने  ... 
कन्याओं के स्वर : " भरा समुन्दर, गोपी चंदर, बोल मेरी मछली , कितना पानी
एक कन्या उत्तर देते कहती है : "  इतना पानी ..इतना पानी " ..
 आहा ! यहां मछली रानी आ गयी ..
   " मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है ,
      हाथ लगाओ तो डर जायेगी, बाहर निकालो तो मर जायेगी ! " 
 ( हाहाहा ...बच्चे तालियाँ बजा कर, किलकारियां लेते हुए ,  खूब हँसते हैं ....) 
चाचा मस्ताना : 
   " बच्चों पानी से एक कहानी याद आ रही है.  सुनोगे
एक समय की बात है।  एक थे महा पुरुष " मनु " भारत भूमि  पर  प्राचीन काल था
मनु महाराज, ' कृतमाला ' नदी में स्नान कर रहे थे।  उन्होंने ज्यूं ही पानी में हाथ डाला कि एक सुन्दर सी ,  छोटी सी, प्यारी सी  चमकते हुए रंगोंवाली एक मछली उनके हाथों में आ गयी !  उस रंगीन मछली को देखकर मनु महाराज  बड़े प्रसन्न हुए ! वे  उसे आपने महल में ले आये और एक कांच के बड़े से बर्तन में मछली को साफ़ जल भरवाकर उस में रख दिया और मछली तैरने  लगी तो उसे देख सभी बड़े प्रसन्न हुए।  
 पर जानते हो आगे क्या हुआ ? वह मछली तो भई ,  दिन दूनी , रात चौगुनी बढ़ती ही चली गयी !
तब मनु महाराज ने उस मछली को बर्तन से निकालकर , अपने महल के पास फैले एक  सुंदर सरोवर में रखा।  pr ये क्या !  वहां भी  वह मछली खूब बड़ी सी हो गई और वह  बढ़ती  चली गयी ! तो पुन: मछली को सरोवर से हटाकर उनके महल से दूर बहती हुई नदी में ले जाया गया। दो दिन बीते और मछली और भी बड़ी हो गई !  फिर तो वह नदी भी छोटी पड़ गयी तो मनु महाराज सेवकों की सहायता से मछली को सागर किनारे  ले आये !
बच्चों , उस चमत्कारी मछली की पूँछ और शरीर अब अतिशय विशाल हो गया था ! जानते हो बच्चों , ये मछली स्वयं भगवान महाविष्णु थे जो मत्स्य अवतार लेकर धरती पर अच्छे लोगों की रक्षा करने आये थे ! उन्होंने मनु राजा से कहा 
' आप का मन पवित्र है। मैं आपकी रक्षा करने आया हूँ। आप जगत के हर प्रकार के प्राणियों के जोड़े जैसे २ मोर, २ गैया, २ बंदर , २ भालू, २ शेरों को लेकर एक बड़े नौका पे  सवार हो जाइए। नौका को मेरे शरीर से बाँध लें।  धरती पे अब प्रलय वर्षा होगी।  आपकी नौका और उसमे सवार सारे प्राणी सुरक्षित रहेंगें। मैं आप सभी की रक्षा करूंगा। " मनु महाराज ने भगवान की आज्ञा का पालन किया। 
संत महात्मा महाराज मनु  ने मत्स्य के पीछे अपनी नौका बांध दी और धरती पर खूब वर्षा हुई बाढ़  आ गयी सारे प्रदेश डूबने लगे परंतु मनु महाराज की नाव को मत्स्य भगवान् की कृपा से , रक्षा का छत्र मिला और वे बच गये और उनकी नाव में सवार कयी तरह के प्राणी भी जीवित रहे ! 
एक बच्चा : सारी दुनिया डूब गयी ! हाय राम ! 
एक लडकी : मैं नहीं डूबूँगी ! मैं तो मेरे पापा के संग स्वीमींग करती हूँ ....
चाचा मस्ताना : अरे वाह ! बच्चों आप सब भी तैरना अवश्य सीखना , बड़े काम का है और व्यायाम भी है ! 
बच्चे समवेत : हां हां हम भी तेरा सीखेँगेँ ..फिर हम नहीं डूबेंगें !    
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों ये बतलाओ ,
                   पानी  पे झिलमिलाते सितारे देखे हैं आप ने
कुछ बच्चे : जी हां चाचा मस्ताना , हमें ' तारे ' बहोत पसंद हैं ! 
एक बालक " मैं गाऊँ चाचा ? मेरे माँ ये गीत गातीं हैं  ...
" अले लल्ला लल्ला लोरी , दूध की कटोरी , दूध में पतासा , मुन्नी करे तमासा "  चन्दा मामा दूर के , पूए पकाए भुर के, आप खाओ थाली में, मुन्ने को दें प्याली में " 
कुछ बालक : जगमग जगमग करते तारे, कितने सुन्दर कितने प्यारे ! 
                किसने सूरज चाँद बनाए ?  किसने काली रात बनायी
                किसने  सारा जगत बनाया ? किसने ? बोलो किसने
( मंच के परदे पे निहारिकाएं, तारा मंडल और ग्रहों, उप ग्रहों को घूमता हुआ द्रश्य दीर्घा पट दीखलायी देता है )
 " आओ , प्यारे तारे आओ, आकर मीठे सपन सजाओ,
 जगमग जगमग करते जाओ , हमको अपना गीत सुनाओ " 
एक बड़ा सा प्रकाशमय तारा आकर रूकता है :
"  बच्चों क्या आप मेरी कहानी सुनोगे
मैं उत्तर दिशा में स्थिर रहता हूँ , मैं ' ध्रुव तारक ' हूँ !  
एक बालक : हां मेरी स्कुल में सिखलाया था - आप तो " नोर्थ - स्टार " हो ! है ना
ध्रुव तारा : मुझे सब जानते हैं , मुझी से उत्तर दिशा को पहचानते हैं !
               मेरी कहानी सुनाऊँ
समवेत बच्चे : हां हां , सुनाईयेना ....
सूत्रधार का स्वर :
" एक समय की बात है , एक थे राजा जिनका नाम था ' उत्तानपाद ' जिनकी २ रानियाँ थीं !  एक थीं ' सुरुचि ' और दूसरी थीं ' सुनीति ' ' ध्रुव ' सुनीति के पुत्र थे और उत्तम सुरुचि के !  राजा उत्तानपाद , उत्तम को बहुत प्यार करते उसे गोदी में बैठालते पर ध्रुव को  ऐसा नहीं करते जिससे बालक ध्रुव के मन को दुःख पहुंचताथा।  
एक दिन की बात है।   राज सिंहासन पे माहराज उत्तानपाद , उत्तम को गोद में लेकर बैठे थे तो बालक ध्रुव भी वहां आया। 
ध्रुव : ' पिताजी ...पिताजी , मुझे भी बैठना है मुझे भी गोदी ले लो ना ! ध्रुव ने बड़े प्यार से अनुरोध किया। 
राजा उत्तानपाद : रूक  जाओ  ध्रुव ..देखो अभी तुम्हारा छोटा भैया यहां बैठा है ...
                       राजा ने समझाते हुए ध्रुव से कहा . 
रानी सुरूचि :  " ध्रुव ! तुम बड़े हठी हो ! चलो भागो यहां से ...परेशान मत करो ...' फिर धीमे से वो बोली . 
 ' अपने पिता जी की गोदी में बैठने के लिए तुम्हे नया जन्म लेना पडेगा ..हूंह ....'     
ये कड़वी बात को बालक ध्रुव ने सुन लिया और वह रूढ़ कर वहां से दूर चल दिया और जाते जाते फफक कर रोने लगा। 
अब ध्रुव अपनी माँ , रानी सुनीति के पास पहुंचा जो महाविष्णु की आराधना - पूजा करते आँखें मूंदें हाथ जोड़े हुए महाविष्णु की सुन्दर प्रतिमा के समक्ष बैठीं हुईं  थीं।  
अपने पुत्र की रूलाई के स्वर से माता सुनीति का ध्यान भंग हो गया।  उन्होंने ध्रुव को बाहों में भर लिया और माथा चुम लिया और माँ उसे प्यार करने लगीं। 
ध्रुव रोते  हुए :
  "  माँ, माँ ...पिताजी मुझसे प्यार नहीं करते ! ...आज उन्होंने मुझे गोदी में नहीं बिठलाया , वे सिर्फ भैया को प्यार करते रहे 
माँ सुनीति : " मेरे बेटे , ईश्वर तुम्हे प्रेम करते हैं  साधारण मनुष्यों के स्नेह से ईश्वर के प्रेम की क्या तुलना होगी बेटे ! शांत हो जा ! "
माता सुनीति ने अपने पुत्र ध्रुव को महाविष्णु की प्रतिमा की ओर सम्मुख करते हुए बहुत स स्नेह जतलाया और कहा ' ये ईश्वर हैं बेटे , इन्हें  प्रणाम करो
ध्रुव : ' माँ , मैं महाविष्णु से पूछना चाहता हूँ , क्या वे मुझे प्रेम करते हैं ? मैं जा रहा हूँ तपस्या करूंगा और प्रभू के दर्शन करूंगा !
सुनीति : ' अरे रूक जा मेरे लाल ! बेटे ध्रुव ! तू अबोध बालक है ! किस प्रकार ऐसी कड़ी तपस्या कर पायेगा .. रूक जाओ पुत्र ! देखो यूं , हठ ना करो ...मैं तुम से प्रेम करती हूँ ...सच ! अब मान भी  जा बेटे !
माँ ने लाख समझाया परंतु बालक ध्रुव ने एक ना मानी और महाविष्णु के दर्शन करने का प्रण करते हुए घोर तपस्या करने गहन वन में बालक ध्रुव चल दिया।
तपस्या करते महाविष्णु का नाम बार बार जपते हुए ध्रुव ने लंबा समय व्यतीत किया जिससे स्वयं ईश्वर महाविष्णु बालक ध्रुव की तस्या और लग्न देख कर वे ध्रुव  के समक्ष एक दिन साक्षात प्रकट हो गये  और मुस्कुराते हुए महाविष्णु ने ध्रुव के माथे पर अपना हाथ रख दिया और प्यार से ध्रुव का माथा सहलाया।  
महाविष्णु :' पुत्र ध्रुव ! आँखें खोलो ..मैं आया हूँ और तुम मुझे,  सर्वाधिक प्रिय हो ! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई है मांगो क्या चाहते हो ?' 
ध्रुव ने प्रभू के कँवल जैसे सुन्दर व दिव्य चरण थाम कर अश्रू पूरित स्वर से कहा
' हे प्रभो , मैं आपके पास रहना चाहता हूँ
महाविष्णु : ' तथास्तु पुत्र ! अब तुम्हारा स्थान उत्तर दिशा को प्रकाशित करते हुए, मेरे समीप सदैव  अचल रहेगा, तुम अमर रहोगे मेरे पुत्र ध्रुव !
चाचा मस्ताना : तो बच्चों, इस तरह उत्तर दिशा में " राजकुमार ध्रुव " तारक बन कर इस तरह स्थिर हो गये और आज भी वहीं हैं ! 
एक बालक : " चाचा जी , तब ध्रुव कितने यर्ज़  ( साल ) का था ?  " 
चाचा मस्ताना : अरे बेटे तपस्या करते हुए ध्रुव की उम्र थी बस पाँच साल की जब उसने इतनी कठोर तपस्या की थी ! अगर वह ५ साल का अबोध बालक ऐसी कड़ी तपस्या कर सकता है तो बताओ , स्कूल का होम - वर्क क्या भला कोई कठिन काम है
आप सब अपना रोज का , स्वाध्याय = मतलब होम - वर्क , नियमित रूप से किया करो तब खूब तरक्की करोगे  और उसी से एक दिन बहुत बड़े इंसान बनोगे। तो बच्चों आप  मन लगाकर अपना काम करना। 
मेरे बच्चों ...सुनो
                    ' मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम
                      परबत की छाती को फोड़ , ऊपर जो है धारा आती ,
                       बाधाओं से लड़नेवाली, वह जीवन झरना कहलाती 
                       कलकल करती रहती हरदम , कभी नहीं करती आराम  
                       सात समुन्दर को कर पार , जो आता लेकर आलोक ,
                       उस सूरज को किसी मोड़ पर, अन्धकार न सकता रोक !
                       आता लेकर सुबह सुहानी , जाता हमें दे कर मीठी शाम
                        कितनी छोटी ये चींटी रानी , पर हैं बडी लगन की पक्कीं,
                        हो गर्मी सर्दी , बरखा हर दिन चलती रहती जीवन चक्की 
                        उनके काम के आगे भारी भरकम हाथी हो जाता नाकाम ! 
                        मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम .... " 
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों अब बतलाओ, आपको कौन से खेल पसंद हैं  ?
                    बबलू     ..आप बताओ . 
बबलू : ' मुझे तो लुका छिपी सबसे अच्छी गेम लगती हैं ! 
चाचा : खूब कही बबलू जी ! हम भी खूब खेला करते थे पर अब तो चाची , हमें पकड कर ' आऊट ' कर देतीं हैं ! 
अच्छा अब आगे सुनो, एक दिन एक बहादुर बच्चे को उसके दुष्ट पिता ने  चोरी - छिपे   भगवान की पूजा करते हुए देख लिया था। 
कुछ बच्चे : कौन था वो बालक चाचा जी
मस्ताना : एक समय की बात सुनो, एक था राक्षस - उसका नाम था  हिरण्यकश्यपु ! वह दुष्ट बड़ा ही बलशाली था।  वह बड़ा घमंडी था।  अपने बाहुबल के कारण वह मनमानी करने लगा।  भगवान के नाम स्मरण से वह चिढ जाता और उस दुराचारी ने पूजा - पाठ ही बंद करवाने का  हुक्म दे दिया ! वह दुष्ट और घमंडी कहने लगा 
' मुझे प्रणाम करो ! ईश्वर कोई नहीं हैं बस मेरा ही सब ध्यान धरो " 
एक बालक : मेरी मम्मी उसकी बात कभी नहीं मानतीं 
                 वो तो रोज कृष्ण जी की पूजा करतीं हैं ! 
दूसरा बालक : मेरी मम्मी गिरजाघर जातीं हैं मोमबतियां जलातीं हैं 
तीसरा बालक : मेरी अम्मी रोजाना नमाज पढ़तीं  हैं ....
चौथा बालक :  हम गुरूद्वारे जाकर " वाहे गुरु दा खालसा जपते हैं जी ! " 
पांचवा बालक : मेरी मम्मी पापा और मैं ,
                    ' अगियारी ' जाते हैं  अग्नि देव की पूजा करते हैं।  
चाचा मस्ताना : बच्चों, रास्ते अलग अलग हैं पर भगवान एक हैं 
                   यूं  समझ लो एक सुंदर बाग़ है जिस बाग़ के बीचों बीच एक 
                  सुंदर पानी का फव्वारा है।  अलग अलग रास्तों से चलकर हम सब 
                  वहां फव्वारे के पास पहुँचते हैं।  पानी पीते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं।  हाँ अब कहो , ' पानी ' तो एक सा  ही रहेगा न ?  जिस किसी रूप में आप सब को परम पिता ईश्वर पसंद हों उन्हें पूजो।  ईश्वर ही हमें सत्य का रास्ता दिखलाते हैं।  उसी सत्य के रास्ते पे चलना सीखना मेरे बच्चों  !  
बच्चे : हां चाचा जी , फिर आगे क्या हुआ ? कहानी तो अधूरी रह गयी -- 
चाचा मस्ताना : हां तो उस दुष्ट राक्ष्स  के घर, एक सुंदर , नन्हा सा, कोमल - सा ,
 भोला भाला,  बालक ' प्रहलाद ' पैदा हुआ जो जन्म से ही सदा  हरिनाम हरि हरि जपा करता था और ईश्वर का नाम लिया करता ! 
  ' बालक प्रहलाद ' की भक्ति से उसके पिता ' हिरण्यकश्यपु ' नाराज होते रहे। उस निर्दयी ने अपने ही फूल से कोमल बालक को , पहाडी से नीचे फिंकवा दिया पर प्रभू ने प्रहलाद की रक्षा की और प्रहलाद बच गया ! 
             " जाको राखे सांईया, मारी सके न कोई " ये सच हुआ ! 
कुछ बच्चे : कैसा दुष्ट था ये राक्षस ! हाय ! 
चाचा मस्ताना : अब तो बच्चों, उस दुष्ट राक्षस का क्रोध बढ़ गया।  उसने अपनी बहन प्रहलाद की बुआ ' होलिका ' को बुलवाने सेवकों को भेज दिया। वो आयी ! इसे प्रभू से वरदान मिला था कि, अग्नि से वह नहीं  जलेगी। तो होलिका , प्रहलाद को गोदी में लेकर आग के भीतर जाकर  बैठ गयी ! पर आश्चर्य ! प्रहलाद का बाल भी बांका में हुआ और यही  होलिका धू - धू करती हुई आग की प्रचंड लपटों में जल कर भस्म हो गयी ! इस दारूण घटना को देखकर , भगवान जी को भी क्रोध आया 
                       शेर का मुख धरे , आधे सिंह और नीचे बलवान पुरुष का रूप लिए ,
                       भगवान नरसिंह हिरण्यकस्यप के राजमहल के एक खम्भे से बाहर 
                       निकले और जोर से चिंघाड़े ..तो दसों दिशाएं भी भय  से कांपने लगीं 
भगवान नरसिंह : ' हे पापी  हिरण्यकस्यप ! अब तेरा अंत काल आ गया है ! ' और तीखे नुकीले नाखूनों से , नरसिंह भगवान ने उस गंदे राक्षस को मार दिया !
 तब , प्रहलाद को नरसिंह भगवान ने अपना असली स्वरूप दिखलाया। 
 वे ' महाविष्णु ' स्वरूप में चतुर्भुज रूप में  निर्मल , मधुर स्मित लिए प्रकट हुए  और उन्होंने प्रहलाद को ' राजा ' बना कर सिंहासन पर बैठाल  दिया। 
समवेत बच्चे : हे  ! हम भी राजा बनेंगें ....हम भी राजा बनेंगें ....
सूत्रधार : चाचा मस्ताना बच्चों को लेकर एक उड़ने वाली कालीन पे जा खड़े हुए तो वह उड़ने लगी और अब वह भारत से आगे पश्चिम दिशा में उड़ चली।  
चाचा : अरे ! ये हम कहाँ आ पहुंचे ? बताओ बच्चों , हम कहां हैं ?  
बच्चे : ( नीचे झांकते हुए ) ये तो अरबस्तान लग रहा है चाचा जी 
घूँघरूओं की , दिलरुबा की और मुरली जैसे सुरीले वाध्य यन्त्रों के स्वर सुनायी दीये और बच्चों ने देखा कि, रेत ही रेत बिछी हुई थी और ऊंटों के काफिले गुजर रहे थे।  खजूर के पेड़ों से कहीं कहीं हरियाली भी थी जहां चश्मों का पानी बह कर नन्ही झील बनी हुई थी। 
चाचा : बच्चों, यहीं पर हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था उन्होंने इंसानियत को इस्लाम का पाक पैगाम दिया था और कुराने शरीफ भी यहीं की सरज़मीन से आयी है. वे फ़रिश्ते थे जिनके पैगाम ने हज़ारों लोगों को अमन चैन का रास्ता दीखलाया !
' अय खुदा.. . तू है कहां, हम तेरे बंदें हैं
ये आसमां तेरा है सारा , ये नूर तेरा है  -
 अय खुदा ...अय खुदा ...
अय खुदा हम तेरे दामन में हैं पले
तेरी बदौलत , हम सभी , तेरा नाम लेकर चले 
अय खुदा ....अय खुदा  ...." 
एक बालक : मैं ईद के चाँद को देख कर खुश होता हूँ बड़े अब्बू को सलाम करता हूँ   मौलवी चाचा के साथ इबादत करता हूँ ! 
मौलवी : शाबाश मेरे बच्चे ..खुश रहो ...फूलो फलो ...
सूत्रधार : अरे ये चाचा आगे बढ़ते तेजी से कहाँ चल दीये
अब कौन देस पहुंचे जनाब ?
चाचा : ये लो हम आ पहुंचे ' येरूस्शालेम ! इसा की भूमि ! यहीं वे पैदा हुए थे 
ज़ोन, तुम  बतलाओ , कहो ...कहो , शरमाओ नहीं ...
ज़ोन : ईसा मसीह मुझे बहुत प्यारे लगते हैं। उन्हें सलीब पर देख मेरी आँखें भर आतीं हैं।  ईसा मसीह , माता मरीयम के बेटे थे।  ईसू ने भाईचारे व प्रेम का पाठ पढ़ाया था हमारी ' बाईबल ' में बहुत सी सुंदर कहानियां हैं।  
     सुनोगे एक कथा ? लो सुनो 
      ' एक बार , एक बीमार आदमी , सडक पर , थक कर गिर पडा ! वहां से एक सेठ गुजर रहे थे उन्होंने इस बीमार को देखा पर उन्हें दया नहीं आयी और वे चले गये 
        इसी तरह कयी सारे लोग आये और किसी ने भी मदद नहीं की और सब चले गये।  कुछ देर बाद, वहां से एक गरीब आदमी गुजरा।  वह बीमार के नजदीक आया। 
उसे सहारा देकर बैठाया , पानी पिलाया और अपनी रोटी तोडकर उसे खीलायी।  फिर उस बीमार के घावों को साफकर , पट्टी भी बाँध दी तब वह बीमार स्वस्थ लगने लगा और उठ कर खड़ा हो गया ! 
      लोग चकित होकर देखने लगे तो वहां  प्रकाश की किरणें छाने लगीं और वही              बीमार आदमी खुद , भगवान बन गये ! उस गरीब आदमी का हाथ पकड़ कर वे उसे अपने संग ' स्वर्ग - हेवन ' में ले गये 
चाचा : अरे वाह ज़ोन बड़ी उम्दा कहानी सुनायी तुमने ! इस कथा को  " ध गुड समारीटन " कहा है धर्म ग्रन्थ बाईबल में !
 तो बच्चों इस कथा से हमें ये सबक मिलता है कि , हमेशा हमसे जो भी बन पड़े , हर किसी जरूरतमंद की सहायता  करें - जो हमसे कमजोर है उन पर दया भाव रखें ..
सुनो
         ' मिलजुल कर हम काम करें तो, कोई काम कठिन नहीं रहता 
            एक दूजे का हाथ बंटाएं तो कोई मुश्किल काम नहीं रहता ! 
           क्यों बच्चों, सही कह रहा हूँ ना
एक लडकी : गुरप्रीत , क्या इस राखी पे मैं तुम्हें राखी बाँध सकती हूँ
गुरप्रीत : हां भं जरूर बाँधना ! मैं तेरी रक्षा करूंगा ...
             मेरी लाडली बहना के लिए जान भी  कुरबान है ..
लडकी : ना ना मेरा वीर , मेरा भईया , सौ साल जीये  ...खूब मज़े करे 
             मेरा भाई बड़ा बलशाली है भईया ...भईया ....
             है बहन बांधती राखी जिसको , वही उसका सच्चा भाई 
             हर मुश्किल में आकर सहलाता, वही है मेरा प्यारा भाई
             भैया मेरे , मेरे गहना , देखूं मैं तुझे हरदम यूं  मेरे अंगना   
             आया सावन झूला लेकर , भैया घर तेरे , मेरे सूना  रे अंगना
बच्चे : झूला हमें कितना प्यारा लगता है जिस बच्चे ने झूला नहीं झूला हो उसका कैसा बचपन ! 
चाचा : झूला झूलते हमें न भूल जाना ! 
बच्चे : नहीं चाचा , हम आपके दोस्त हैं - आपको कभी नहीं भूलेंगें न ही छोड़ेंगें -- 
चाचा " बेहराम ,बेटे , थक गये हो क्या ? तुम भी कुछ बोलो न ..
बेहराम : मैं हूँ पारसी ..भारत हमारे पडदादा ईरान से आये थे और भारत में घुलमिल गये। पारसी लोग गुजरात प्रांत के ' संजाण ' नामके बंदरगाह पे वे, उतरे थे। 
एक छोटी बच्ची : बंदर ? कहाँ है बंदर
चाचा : अरे छुटकी ! बंदरगाह का मतलब है जहां बड़ी बड़ी नाव किनारे आतीं हैं - 
तुतलाकर : मैं बोट में एक बाल पानी में घूमने गयी थी ...
दूसरी : हां ...ऐसे ही एक बोट आयी थी उसकी कहानी बेहराम सुना रहा है अब सुनो 
बेहराम : ' संजाण के राजा ने दूध से भरा कटोरा , पारसी भाईयों के पास भेजा मतलब  था कि मेरा नगर इस लबालब भरे  हुए कटोरे की तरह लोगों से भरा हुआ है  इस में जगह ही नहीं ! तब हमारे गुणी दादाओं ने उसी दूध से भरे कटोरे में थोड़ी चीनी मिला दी !  मतलब उनका जवाब था कि, ' हम दूध में शक्कर  घुल जाती है उस तरह , घुलमिल कर रहेंगें। '
एक बच्चा : देखूं क्या तू भी शक्कर जैसा मीठा है क्या बेहराम ? काटूं तुझे
चाचा : अरे भाई अब हल्ला गुल्ला मत शुरू कर देना - बेहराम शाबाश बेटे - शाबाश 
 एक थे बालक अष्टावक्र !  नहीं सुना उनका नाम ? वे थे एक ऋषि के पुत्र ! अष्टावक्र के  पिता बड़े ही विद्वान और महात्मा थे।  अब अष्टावक्र का नाम ऐसे क्यूं रखा गया था पता है क्या ? नहीं ? कोई बात नहीं।  मैं बतलाता हूँ क्योंकि , उस कुमार का शरीर आठ जगह से वक्र माने टेढा मेढ़ा था ! पाँव, हाथ, कमर, गरदन, मूंह वगैरह ..कयी लोगों को इसी तरह बीमारी के  कारण ऐसे हो जाता है !
बच्चे : हाय बेचारा अष्टावक्र ! 
चाचा : न न ...वह बेचारा नहीं अष्टावक्र परम ज्ञानी ऋषि कुमार था। 
 एक दिन महाराज जनक  के राज दरबार  में अष्टावक्र आ पहुंचा ।  उसे देख कर पहले तो सब हंसने लगे।  कुछ बुरे और शैतान लोगों ने अष्टावक्र का मज़ाक भी उड़ाया पर बच्चों अष्टावक्र शांत ही  रहा।  फिर उसने ऐसी ज्ञान , विज्ञान की बातें सुनाईं तो सभा में जितने भी  लोग जमा हुए थे सब सन्न रह गये ! बड़े बड़े पंडितों को बात करते हुए अष्टावक्र के पूछे प्रश्नों के उत्तर नहें मालूम थे। तब शर्मिंदा होकर बड़े लोगों ने , जनक राजा के दरबार में बैठे बड़े बड़े पंडितों ने सब ने अपनी  हार मान ली और अपने अपने कान पकड़े और जनक राजा ने और सभी ने उठकर  अष्टावक्र को आदर सहित सर झुकाकर प्रणाम किया और उस वीर ज्ञानी बालक का बहुत सन्मान किया। 
           तो बच्चों, किसी के आँख न हो, कान न हो, हाथ, पाँव न हों या किसी के शरीर  के अवयवों में कमी को , कोई कमजोरी हो उनका कभी मज़ाक नहीं करना!
 किसी की कमज़ोरी का मज़ाक उड़ाना   बहुत बुरी बात है !  कयी फूल खिलने से पहले मुरझा जाते हैं ..समझे ना
चाचा : गांधी बापू किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे सब के साथ एक सा व्यवहार किया करते थे। किसी का काम ऊंचा नहीं किसी का नीचा नहीं ! 
तो बच्चों कोइ उंच नहैं कोइ नीच नहीं है !
एक लडकी : चाचा जी , मैं ' फ्लोरेंस नाईटिंगेल " की तरह नर्स बनना  चाहती हूँ और मेरे देश के सैनिकों को घाव लगेगा तो मैं उनकी सेवा करूंगी। 
सुनिए ये गीत ..
              " चाह नहीं  मैं , सुरबाला के घनों में गूंथा जाऊं
                 चाह नहीं प्रेमी माला में बींध प्यारी को ललचाऊँ 
                 मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फेंक 
                 मातृभूमि पर शीश चढाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक 
                      जिस पथ जाएँ वीर अनेक ...." 
एक लडका : चाचा मेरे बापू , खेती करते हैं.  वे  एक किसान हैं।  मैं भी किसान बनूंगा 
               " एय किसान गाये जा, प्यारे हल चलाये जा , आज धूप तेज है
                 पर तुझे खबर कहाँ ? चल रही है लू चले, तुझको उसका डर कहाँ
                  एय किसान गाये जा....गाये जा....   गाये जा....   गाये जा....   " 
चाचा : बच्चों हमारा राष्ट्र गीत रवीन्द्रनाथ टैगौर ने लिखा है एक बार जब वे तुम्हारी 
          तरह छोटे थे तब जिद्द करने लगे कि ' वो जिस पेन से लिखेंगें उस में नीली 
          स्याही नहीं बल्के, फूलों का रस भरा जाएगा ! उनके चाचा जी ने बच्चे का मन 
          रखते हुए ऐसा ही किया।  फूलों से रस निकाला गया और पेन में भरा गया पर 
          अरे , धत्त तेरे की ...फूलों के रस से तो  कुछ लिखा ही न गया !   
बच्चे : जन गण मन अधिनायक जय हे ये राष्ट्र - गीत उन्हीं ने  बड़े होकर लिखा है न ? पर  चाचा जी अभी हमारी बातें ख़त्म नहीं हुई अभी ये गीत हम नहीं गाएंगें हम
              तो  आप से और कहानियां सुनना चाहते हैं चाचा मस्ताना --  कहीये ना - 
चाचा मस्ताना : बच्चों समय भागा जा रहा है।  अब ये आख़िरी कहानी सुनाता हूँ।  भारत देश का नाम कैसे पडा जानते हो ? नहीं ? तो ध्यान से सुनो -- 
                    एक थे राजा दुष्यंत उनकी पत्नी थीं शकुन्तला उन्हीं का बालक था वीर 
                      ' भरत ' वह बचपन में, सिंहों के साथ खेला करता था  हमारे भारत
                       देश में , गंगा, यमुना , नर्मदा , गोदावरी , कावेरी , कृष्णा जैसी 
                      महान नदियाँ हैं ! उन्नत शिखर उठाये हिमालय सी परबत मालिका 
                      हैं  और सह्याद्री , सतपुडा और विन्ध्याचल से परबत हैं !
              यहीं श्री रामश्री कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान अवतरित हुए हैं और उन्हीं सा               मधुर बचपन हमारे देश के बच्चों का हो !
              हमारे भारत देश की हर माता बड़े प्यार , दुलार से फूलों की तरह सम्हाल कर               अपने शिशुओं  को पालती पोसतीं हैं !
                   सच बच्चों , हमारे धन्य भाग्य है कि इस भारत - वर्ष में हम 
                   साथ साथ मिलजुल कर स्वतन्त्र भारत में रहते हैं
                 बच्चों हमें भारत को  एक सशक्त और गौरवशाली देश बनाना  है
                 हम भारत माँ की सदैव सेवा करें !
                 हम भारत को अब कदापि पराधीन न होने देंगें ! आगे बढेंगें,
                 हम  मिलजुल कर  बड़े बड़े काम करेंगें ।
              ऐसे काम करना कि तुम्हारे माँ पिता का सर ऊंचा हो जाये ! 
        समवेत स्वरों में गीत :
      " तुम में हिम्मत है पहाड़ों की , तुम में ताकत है हवाओं की 
                तुम मीठी बातें बोलोगे, जग को प्यार से जीतोगे 
                यह भारत अपना देश है , तुम भारत का  नया सवेरा हो 
भारत के स्त्री एवं पुरुष : हम तो पीछे रह जायेंगें
                                तुम को आगे जाना होगा 
                              आगे बढना यह नारा है,
                              भारत हमको प्यारा है 
                               जगती के भू मंडल पर
                             ये दमकता हुआ सितारा है 
                                 हम भारतीय ! हम भारतीय  !
                                हैं भारतीय हम भारती ! 
                                 मातृभूमि के चरणों में
                                 कोटि वंदन हमारा है !
 - Lavanya


शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

“शारदे माँ शारदे मन को नवल विश्वास दे के अनुगायन के साथ बालभवन में सरस्वतिपूजन संपन्न"



सम्पूर्ण कलाओं की अधिष्ठात्री एवं ज्ञानदेवी माँ सरस्वती का पूजन आज बालभवन परिसर में बच्चों एवं शिक्षकों द्वारा पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ संपन्न की . इस अवसर पर स्टाफ एवं बच्चों के साथ कार्यक्रम की मुख्यअतिथि श्रीमति मनीषा लुम्बा एवं विशिष्ठ  अतिथि श्रीमती सुलभा बिल्लोरे, सुश्री शिप्रा सुल्लेरे, श्रीमती रेणु पांडे, श्री इंद्र पांडे, श्री सोमनाथ सोनी, श्री देवेन्द्र यादव, श्री टी.आर. डेहरिया, सहित संचालक  ने वाद्ययंत्रों की पूजन की . बालभवन के बालकलाकार मास्टर अभय सौंधिया  द्वारा निर्मित मिट्टी  से बनाई  सरस्वती प्रतिमा एवं कुमारी सुनीता केवट द्वारा माँ सरस्वती का चित्र पूजन   के साथ साथ मास्टर अक्षय ठाकुर, सेजल तपा, मुस्कान सोनी, इशिता तिवारी, साक्षी गुप्ता , शालिनी अहिरवार, आयुष रजक शैवलिन द्विवेदी, प्रिया सौंधिया, आदि ने सरस्वती वन्दना, आध्यात्मिक सुगम संगीत, एवं सर्वधर्म समभाव पर केन्द्रित गीत प्रस्तुत किये .
लिंक यहाँ "मिसफिट पर "
दिव्य चिंतन नीर अविरल  गति  विनोदित  देह  की !
छब तुम्हारी शारदे मां  सहज सरिता   नेह की !!
घुप अंधेरों में फ़ंसा मन  ज्ञान  दीपक बार   दे …!!
 शारदे मां शारदे मन को धवल  विस्तार दे
मां तुम्हारा चरण-चिंतनहम तो साधक हैं अकिंचन-
डोर थामो मन हैं चंचल,  मोहता क्यों हमको  कंचन ?
ओर चारों अश्रु-क्रंदन,    सोच को विस्तार  दे…!!
शारदे मां शारदे मन को धवल  विस्तार दे !!


बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी से राष्ट्रीय बालश्री सम्मान प्राप्त बाल-प्रतिभाओं ने की मुलाक़ात :


 प्रदेश के इतिहास में ये पहला अवसर था की राष्ट्रीय स्तर के बालश्री सम्मान प्रदेश के झोली में आए । जिसमे मास्टर निनाद अधिकारी (जवाहर बालभवन,  भोपाल संतूर,) कुमारी हिबा खान (जवाहर बालभवन,  भोपाल, कला) कुमारी कृति मालवीय (जवाहर बालभवन,  भोपाल लेखन, ) मास्टर तनय तलैया (साइंस,संभागीय बालभवन उज्जैन) कुमारी प्रियंका पाटकर (लेखन,संभागीय बालभवन ग्वालियर, ) शुभमराज अहिरवार, (कला, संभागीय बालभवन जबलपुर), कुमारी चंद्रिका अग्रवाल (कला- संभागीय बालभवन सागर, ), कुमारी रूचि तिवारी (कला- अभिनव बालभवनभोपाल,), तथा मास्टर ईशान शुक्ला (लेखन- अभिनव बालभवन भोपाल)   के क्षेत्र में प्राप्त हुए हैं . देश के 63 बालश्री सम्मान हेतु चयन प्रक्रिया चयनित किया जिसमें  मध्य-प्रदेश इन 09 बच्चों का चयन हुआ.  राष्ट्रीय बालभवन, के तत्वावधान में विज्ञान-भवन में गत 3 फरवरी 2016 को  मान.  मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी ने हर बच्चे को 15-15  हज़ार रूपए के किसान विकास पत्र, एक ट्राफी, पुस्तकें प्रदान कर सम्मानित किया .
                                            
                 विगत 8 फरवरी 2016 को मध्य-प्रदेश के बालश्री से सम्मानित बच्चों महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह से  भेंट की. तथा उनकी अगुआई में  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी से मिले.   बच्चों ने अपने भाव एक कविता के रूप में मुख्यमंत्री जी को भेंट की .  बालश्री विजेताओं को बधाई देकर स्नेह व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री महोदय ने इन प्रतिभाओं के लिए विशेष कार्यक्रम बनाने का दायित्व माननीया मंत्री जी को सौंपा . 
मानी शुभम राज की बात ... शुभम के पिता श्री जगदीश राज़ मिलेंगे सी एम से 
 जबलपुर के शुभमराज ने भेंट के दौरान बताया कि - उनके सब्जी विक्रेता पिता श्री जगदीशराज अहिरवार की बरसों से आपसे मिलाने इच्छा है . मुख्यमंत्रीजी ने शुभम का पूरा पता फोन नंबर प्राप्त कर वादा किया कि वे शुभम के पिता से अवश्य मिलेंगे . 

श्री जे एन कन्सौटिया प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, ने बालश्री विजेता बच्चों से मुक्तरूप से  बातचीत की तथा सिंहस्थ में प्रदेश के सभी बालभवनों की संयुक्त-सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए तैयारी करने के लिए कहा.   

 आयुक्त महिला-सशक्तिकरण से भेंट कर बच्चों ने उनसे प्रोत्साहन पाया. इस अवसर पर श्री विशाल नादकर्णी विशेष-कर्तव्यस्थ अधिकारी , (महिला बाल मंत्री कार्यालय)  श्रीमती तृप्ति त्रिपाठी, संचालक जवाहर बालभवन भोपाल, श्री एम. एस. पवार, सहायक संचालक भोपाल,  संभागीय बाल भवनों के सहायक संचालक गिरीश बिल्लोरे, जबलपुर, श्री हीरेन्द्र सिंह ग्वालियर, के अलावा श्री आर. सी मिश्रा की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.   

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

मास्टर शुभमराज अहिरवार नवाजे गए राष्ट्रीय बालश्री सम्मान 2013 से

      संभागीय बालभवन जबलपुर में संचालित सतत रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों के चलते  संस्कारधानी को निरंतर मान-सम्मान एवं यश अर्जित करने के अवसर मिल रहे हैं  बाल भवन के विद्यार्थी मास्टर शुभमराज अहिरवार को राष्ट्रीय  बालश्री सम्मान 2013 के लिए नई-दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमति स्मृति जुबिन ईरानी ने दिनांक 3/2/2016 को अलंकृत किया. समारोह में कला-साहित्य-संगीत- नृत्य की  62 बाल प्रतिभाओं को देश के प्रतिभावान बच्चों को दिए जाने वाले सर्वोच्च  “बालश्री सम्मान” दिया गया है . प्रदेश के जवाहर बालभवन से 5 तथा संभागीय बालभवनों क्रमश: जबलपुर, उज्जैन, इंदौर से एक एक प्रतिभाशाली बच्चों सहित आठ बच्चे  सम्मानित हुए.  
प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह , प्रमुख सचिव श्री जे एन कन्सौटिया  आयुक्त एवं विशेष कर्ताव्यस्थ अधिकारी  महिला सशक्तिकरण श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव , राज्य स्तरीय बालभवन की निदेशक श्रीमती तृप्ति मिश्रा , संयुक्त-संचालक द्वय श्री उमाशंकर नगाइच एवं सुश्री  सीमा शर्मा  संभागीय  उपसंचालक गण श्रीमति मनीषा लूम्बा , एवं श्री आर. सी . त्रिपाठी श्री हरीश खरे, श्री दीपक संकत एवं श्री एम एस पवार, सतशुभ्र मिश्र मनीष शर्मा  सहित विभागीय अधिकारियों ने बालभवनों  प्रशंसा करते हुए सृजनशीलता को सर्वोपरी निरूपित किया .
महिला बाल विकास मंत्री श्रीमति मायासिंह जी ने उपलब्धियों  की प्रशंसा करते हुए बालश्री विजेता बच्चों एवं बाल-भवनों के निदेशकों को दिनांक 08 फरवरी 2016 को भोपाल आमंत्रित किया है. जबलपुर से मास्टर शुभमराज एवं संचालक संभागीय बालभवन गिरीश बिल्लोरे  भोपाल जावेंगे .
बालभवन जबलपुर की इस उपलब्धि पर संचालक ने अनुदेशक श्रीमती रेणु पांडे एवं बालश्री अवार्डी शुभम को शुभकामना देते कहा- “शहर को आचार्य बिनोवा जी ने जो नाम दिया उसकी गरिमा न केवल शहरवासी वरण शहर के बच्चे भी बरकरार रखने के लिए सक्षम हैं. इन बच्चों की सृजनशीलता का आभास - रंगों की उड़ान , प्रथम सबला सम्मेलन सहित कई अवसरों पर नगरवासियों को हुआ है.” जिसका श्रेय जबलपुर के माननीय जनप्रतिनिधियों  एवं मीडिया को जाता है. अभिभावकों से अनुरोध है कि अपने बच्चों की रचनात्मक-अभिरुचि को बढ़ावा देने संभागीय बालभवन जबलपुर में अवश्य आएं .
   

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

Union HRD Minister Smt Smriti Zubin Irani conferred the National level Bal Shree Awards

The Union HRD Minister Smt Smriti Zubin Irani conferred the National level Bal Shree Awards 2013, on 62 talented children at New Delhi today. While speaking on the occasion, she called upon National Bal Bhawan to treat Swachchata (cleanliness) as a festival. Appreciating the soulful rendering of a song ‘yeh Bharat Desh Hai mera...’ by a special child and Bal Shree awardees, she added that the festival of Swachchata could be celebrated through the respective district level Bal Bhawans by organising groups of children to visit villages around their Bal Bhawans to spread the message of cleanliness through their performances in the form of art and dance. 




 She was of the view that with the help of such children India can begin a new chapter and a new chain in its culture and tradition. She further suggested that the contributions of the ‘Gurus’ of the talented children in the area of performing art need recognition. In this context, she also said that a meeting of ‘Gurus’ could be convened to take their ideas and views as to how we can further enhance the creativity and skills of the talented children. 


 The Minister also praised the initiatives taken by her Ministry, like ‘Kala Utsav’ where the performances of children was utilized to spread the messages of ‘Beti Bachao Beti Padhao’. She also appreciated ‘Seema Darshan’ initiative where school children visited the border areas for having the feel of the life of soldiers in those areas. 
The Union Minister conferred the Plaque, Citation, Kisan Vikas Patra of Rs 15000/- each and books and CDs worth Rs1500/- to the Bal Shree awardees. The Union Minister congratulated all the awardees, their parents and their ‘Gurus’ and teachers. 62 winners of 2013 National Bal Shree Camp were selected through a meticulous selection process under four streams of National Bal Shree Honour viz Creative Performance, Creative Art, Creative Scientific Innovations and Creative Writing. 18 children have been awarded in Creative Arts, 15 in Creative Performance, 19 in Creative Writing and 10 in Creative Scientific Innovation stream of 19th National Bal Shree. 

The Bal Shree awardees of Creative Arts presented to the Union HRD Minister a painting created by them and the Creative writing awardees presented to her a poetry written by them on the topic ‘Clean India from the eyes of the Youth.’ 

The Chairperson of National Bal Bhawan, Smt Shallu Jindal quoting the Union Minister said that art can be engaged in spreading peace. The art performance by children can bring about a considerable change in the society as art can cross boundaries. It is also up to the elders to guide the path of children. 

Also present on the occasion were Dr S.C. Khuntia, Secretary School Education and Literacy (SE&L), other senior officials of Ministry of HRD, National Bal Bhawan and the parents/relatives of Bal Shree awardees. 






मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

जबलपुर जिले में महिला बाल विकास की झांकी को मिला पहला स्थान


दिनांक 26 जनवरी 2016 को माननीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री  श्री गोपाल भार्गव के आतिथ्य में 67 वें गणतंत्र-दिवस समारोह का आयोजन हुआ.
             बेटियाँ मातृशक्ति का प्रतीक हैं  भारतीय संस्कृति का गौरवगान हैं । इसी भावभूमि पर आधारित प्रदर्शनों के साथ महिला-बाल विकास विभाग के  महिला सशक्तिकरण, एवं बाल विकास सेवा विंग  67वें गणतंत्र-दिवस समारोह में शामिल हुए.
    परेड में शामिल  22 सदस्यीय शौर्या दल  की कमान श्री योगेश नेमा के हाथ थी .
  
       “बेटियाँ : नए क्षितिज की ओर” थीम पर आधारित महिला बाल विकास की झांकी पांच भागों में विभक्त थी । 
भाग एक :- घुड़सवार बेटियाँ झांकी की अगुवाई करते हुए महिला बाल विकास की इस झांकी में बेटियों द्वारा पिछले दशकों में प्राप्त सकारात्मक बदलाव एवं उपलब्धियों को चित्रित किया है । 
        प्रदेश सरकार न केवल पालने से पालकी तक बेटियों के बारे में संकल्पित है वरन बेटियों की क्षमताओं, योग्यताओं के संवर्धन में आगे बढ़कर सफल एवं कारगर कोशिश की है । 

भाग दो :-  “ नए क्षितिज की ओर ...!” शीर्षक वाक्य बेटियों को सामर्थ्यवान  बनाने का सूचक है । देखिये बेटियाँ किस तरह स्वयं के सबला होने के   प्रमाण दे रहीं हैं । अब तक जिन क्षेत्रों में पुरुष ही कार्य करते थे अब उन क्षेत्रों में महिलाओं के कदम स्थापित हो चुके हैं । महिलाएं कुली, पेट्रोल पम्प पर काम, पिंक वेन ड्रायवर, एवं बाक्सिंग, क्रिकेटिंग  जैसे नए कार्यक्षेत्रों में भी नज़र आ रहीं हैं ।

भाग तीन :- झांकी के दूसरे भाग में आत्मरक्षा के गुर सिखाने बालभवन में विगत 2015 से जारी नि:शुल्क कराते कक्षा के बालक बालिकाओं नें  ... “गुंडा-फाईट” का प्रदर्शन कर सर्वाधिक वाहवाही लूटी .  आत्मरक्षा के लिए सक्षम होती बालिकाएँ जिस तरह गुंडों को परास्त कर धराशाई किया उसे देख सारा स्टेडियम तालियों से गूँज उठा. ।  निस्संदेह यह सजीव चित्रण प्रभावपूर्ण एवं बालिकाओं को आत्मबल देने वाला रहा है ।


भाग चार :-  “कुछ भी हो लाड़ो पलकें झुकाना” को चरितार्थ करती बालिका की “अर्ध-प्रतिमा”  अर्थात “बस्ट” अपने आप में व्यापक संदेश दे रही है साथ ही  विभिन्न क्षेत्रों के लायक खुद को बनाती  बालिकाएँ सजीव रूप से प्रदर्शित हैं ।





भाग पाँच :- झांकी के अंतिम भाग में बेटियों एवं महिलाओं की समग्र सुरक्षा एवं उनके मुद्दों का विस्तार देने वाले  “शौर्या-दल” विकास के  पथ पर अग्रसर है 

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विशेष विवरण
          झांकी में शामिल समस्त कलाकारों, अधीनस्त कर्मचारियों को बालभवन के सौजन्य से उपलब्ध कराए गए मैडेल्स का वितरण श्री आर . सी. त्रिपाठी एवं निर्माण कार्यकारियों द्वारा किया गया . साथ ही सभी को मिष्ठान वितरण भी कराया .  

1.    निर्माण एवं प्रस्तुति  :- महिला बाल विकास विभाग , जबलपुर
2.    मार्गदर्शन :- श्रीमती सीमा शर्मा, संयुक्त संचालक बाल विकास सेवाएं
3.    निर्देशन :- श्रीमती मनीषा लुम्बा संभागीय उपसंचालक, महिला सशक्तिकरण, श्री आर. सी. त्रिपाठी, जिला कार्यक्रम अधिकारी , (बालविकास सेवाएं)
4.    निर्माण कार्यकारी :-  श्री गिरीश बिल्लोरे, सहायक-संचालक, संभागीय बालभवन,जबलपुर,  श्री मनीष शर्मा, सहायक संचालक, श्री अखिलेश मिश्रा , जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी (सहायक संचालक),  वरिष्ट परियोजना-अधिकारी  श्री संजय अब्राहम एवं परियोजना अधिकारी श्रीमती रीता हरदहा,
5.    झांकी के प्रारम्भ में :- सफ़ेद घोड़ों पर सवार बालिकाएं कुमारी साक्षी तिवारी एवं कुमारी अंजना काछी  
6.    क़राते शो :- श्री नरेन्द्र गुप्ता के निर्देशन में  कुमारी रिया साहू, कुमारी रिंकी राय , मास्टर व्योम गर्ग , मास्टर गजेन्द्र डेहरिया , मास्टर नीलेश अहिरवार, मास्टर अंकित,
7.    जीवंत झांकी निर्देशन एवं अभिनय टीम  :- निर्देशन- सुश्री शिप्रा सुल्लेरे, श्री देवेद्र यादव,  एवं श्री इंद्र पाण्डेय, कलाकार - सुश्री प्रज्ञा नेमा (नर्तकी) , कुमारी मनीषा तिवारी (क्रिकेटर,) कुमारी अंशिका-सोनी, (चित्रकार), कुमारी खुशबू राय (मूर्तिकार), कुमारी साक्षी गुप्ता (कुली), कु. गीता जाटव (नेवी), ऋतू सोनी(बाक्सर), तान्या राज (पिंक-वैन ड्रायवर), निशा काछी, (पेट्रोल पम्प आपरेटर), तान्या पांडे (फोटोग्राफर),       
8.     कला निर्देशन एवं मूर्तिकार:- श्रीमती रेणु पांडे (निर्देशक), श्री सुनील परांजपे (मूर्तिकार),
9.    निर्माण प्रबंधन : श्री दीपक ग्राय एवं साथीगण 
                       
                           उत्साहित विजेता टीम का समागम 
बालभवन में झांकी से जुड़े प्रत्येक सदस्य ने प्रसन्नता पूर्वक विजय  को उत्सव की तरह मनाया . जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री आर सी त्रिपाठी , संचालक बाल-भवन गिरीश बिल्लोरे , श्री मनीष शर्मा श्रीमती संजना चौकसे, श्री संजय अब्राहम ने सभी सहयोगियों को पदक दिए एवं इस अवसर पर मिष्ठान वितरण भी हुआ .........   




                                 

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