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पहले टाक शो में मायानगरी के कैमरामैन श्री शैलेन्द्र त्रिवेदी

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 बाल-भवन , जबलपुर  में आयोजित प्रथम टाक शो में   श्री संतोष राजपूत , मुंबई से पधारे श्री शैलेंद्र त्रिवेदी   साथ में संचालक, एवं बालभवन परिवार   "दृश्य के संवहन के लिए कैमरा काफी नहीं कैमरे से दृश्यों  को निहारती आँखें अगर किसी कलाकार की न होतीं तो परदे वाला कलाकार , कलाकार न होता सकता . न ही हिन्दी फिल्मों के जनक  दादा साहब फाल्के अपने सपनों को साकार कर पाते. दादा साहब फाल्के की परिकल्पना अवाक फिल्म हरिश्चंद्र के रूप में सामने आई 3  मई, 1913 को . जबकि 21 अप्रेल 1913 में इस फिल्म का संभ्रांत शहरियों के बीच रिलीज़ हो ही चुका था .  तब से अब तक सिनेमा में अदभुत परिवर्तन आए. अवाक से सवाक, सवाक से डाक्युमेंट्री, शार्ट फिल्मस, विज्ञापन फिल्म, टीवी सोप , रियलिटी शोज़,  फिल्म रील से लेकर डिज़िटाइज़ेशन तक सब कुछ में असाधारण परिवर्तन. किन्तु कैमरे के पीछे वाले व्यक्ति के विज़न में कोई बदलाव नहीं आया . वो आज भी वो शूट करना चाहता है जिसे अच्छा कहा जाए. यानी कथा, स्क्रिप्ट , को किस एंगल से कितना सजहरूप से शूट करना है कि एक ओर कलाकार की कला का नैसर्गिक खुलासा हो वहीं दर्शक की अपेक्षाओं पर