शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

बॉबी नाटक : छोटे परिवारों की बड़ी समस्या का सजीव चित्रण

                                             मशहूर नाटक लेखक स्व. विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित कथानक पर आधारित बाल-नाटक "बॉबी" का निर्माण  संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा श्री संजय गर्ग के निर्देशन में तैयार कराया गया है. जिसकी दो प्रस्तुतियां भोपाल में दिसंबर माह में की जा चुकीं है.
                  बॉबी  नौकरी पेशा माता पिता की इकलौती बेटी है जिसे स्कूल से लौटकर आम बच्चों की तरह माँ की घर से अनुपस्थिति बेहद कष्ट पहुंचाने वाली महसूस होती है. उसे टीवी खेल पढने लिखने से अरुचि हो जाती है. स्कूली किताबों के पात्र शिवाजी, अकबर बीरबल, आदि से  उसे  घृणा होती है.   इतिहास के के इन पात्रों की कालावधि याद करना उसे बेहद उबाऊ कार्य लगता है. साथ ही बाल सुलभ रुचिकर पात्र मिकी माउस, परियां गौरैया से उसे आम बच्चों की तरह स्नेह होता है. और वह एक फैंटेसी में विचरण करती है.  शिवाजी, अकबर बीरबल,  से वह संवाद करती हुई वह उनको वर्त्तमान परिस्थियों की शिक्षा देती है तो परियों गौरैया मिकी आदि के साथ खेलती है. अपनी पीढा शेयर करती है... कि उसे माँ और पिता के बिना एकाकी पन कितना पीढ़ा दायक लगता है.
              बॉबी एक ऐसा चरित्र है जो हर उस परिवार का हिस्सा होता है जो माइक्रो परिवार हैं. जिसके माता पिता जॉब करतें हैं।  स्कूल से आने से लेकर शाम को माँ और पिता के लौटने तक वास्तविकता और स्वप्नलोक तक विचरण करने वाली बॉबी अपनी फैंटेसी  के बीच झूलती है. इस अंतर्द्वंद को बहुतेरे बच्चे झेलते हैं परंतु माता-पिता को इस स्थिति से बहुधा अनभिज्ञ रहते है।  बॉबी यानी श्रेया खंडेलवाल यह सिखाने समझाने में सफल रहीं।
             
                 
 महानगरों की तरह   अब  मध्य-स्तरीय शहरों तक  संयुक्त परिवार के बाद तेज़ी से परिवारों का छोटा आकार होने  लगे हैं  तथा  उससे बालमन पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रभावी तरीके से इस नाटक में उकेरा गया है.
            
               बालरंग निर्देशकों द्वारा बच्चों के ज़रिये ऐसे कथानक के मंचन का जोखिम  बहुधा काम ही उठाया होगा लेकिन संस्कारधानी के इस नाटक को देखकर अधिकांश दर्शकों की पलकें भीगी नज़र आईं थी   संस्कारधानी में बालरंग-कर्म की दिशा में कार्य करने वाले नाट्य-निर्देशक संजय गर्ग  एवम बालभवन जबलपुर के बालकलाकारों की कठिन तपस्या ही मानेंगे कि नाटक दर्शकों के मन को छूने की ताकत रख सका. 
                 मुख्य पात्र बॉबी के चरित्र को जीवंत बनाने में बालअभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल पूरे नाटक में गहरा प्रभाव छोड़तीं है. जबकि अकबर -प्रगीत शर्मा , बीरबल हर्ष सौंधिया, मिकी समृद्धि असाटी , शिवाजी -सागर सोनी, के अलावा पलक गुप्ता (गौरैया)  ने अपनी भूमिकाओं में प्रोफेशनल होने का आभास करा ही दिया।   इसके अलावा मानसी सोनी, मिनी दयाल, परियां- वैशाली बरसैंया, शैफाली सुहानी, आकृति वैश्य, आस्था अग्रहरी , रिद्धि शुक्ला, दीपाली ठाकुर, का अभिनय भी प्रभावी बन पड़ा था. 
                  नाटक की प्रकाश, ध्वनि एवम संगीत की ज़िम्मेदारी सुश्री शिप्रा सुल्लेरे सहित कु. मनीषा तिवारी , कुमारी महिमा गुप्ता,  के ज़िम्मे थी जबकि बाल गायक कलाकार - उन्नति तिवारी, श्रेया ठाकुर, सजल सोनी, राजवर्धन सिंह कु. रंजना निषाद, साक्षी गुप्ता, आदर्श अग्रवाल, परिक्षा राजपूत के गाये गीतों से नाटक बेहद असरदार बन गया था. 
      संभागीय बालभवन के संचालक ने बताया कि - "बच्चों से ऐसे विषय पर मंचन कराना बेहद कठिन काम है किन्तु निर्देशक  श्री संजय गर्ग इस नाटक के ज़रिए उन चुनिंदा लोगों में शुमार हो गए हैं जिनको भारत में ख्याति प्राप्त हुई है. भोपाल में समीक्षकों ने बॉबी नाटक को उत्कृष्ट बता कर पुनः  मंचन करा था."
                    कुल मिला कराकर नाट्य लोक संस्था द्वारा प्रस्तुत नाटक को श्रेष्ठ बाल नाटकों की  सूची में रखा जा सकता है.   

बुधवार, 4 जनवरी 2017

सातवां राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस आयोजन हेतु विविध प्रतियोगिताऍ एवं कार्यक्रम



            भारत निर्वाचन आयोग की पहल पर तथा राज्‍य निर्वाचन आयोग के समन्‍वय से 2011 से आयोजित राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस का सातवां आयोजन आगामी 25 जनवरी, 2017 को भारत निर्वाचन आयोग के स्‍थापना दिवस पर होगा।
          वर्ष 2017 राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस की मुख्‍य थीम ''युवा एवं भावी मतदाताओं का सशक्तिकरण है। इस अवसर पर जबलपुर के समस्‍त शासकीय एवं अशासकीय, एम.पी.बोर्ड, सी.बी.एस.ई., आय.सी.एस.ई. हेतु विविध प्रतियोगिताऍ आयेाजित है।

निबंध लेखन - (किसी एक विषय पर)
1.   मजबूत लोकतंत्र में युवा एवं भावी मतदाताअें की भूमिका।
2.   नैतिक मतदान में भावी मतदाताओं की भूमिका।
3.   लोकतंत्र में महिलाअें तथा युवाओं का स‍शक्तिकरण ।

स्‍लोगन लेखन (किसी भी एक विषय पर)
1.   भावी मतदाता एवं सूचना प्रौ़द्योगिक का उपयोग।
2.   सुव्‍यवस्थ्ति मतदाता शिक्षा।
3.   निर्वाचक सहभागिता का चुनावी प्रबंधक में प्रयोग।
4.   नैतिक मतदान में भावी मतदाता की भूमिका।
चित्रकला प्रतियोगिता (किसी भी एक विषय पर)
1.   ई.व्‍ही.एम. मशीन तथा बी.वी.पी.ए.टी.
2.   आदर्श मतदान केन्‍द्र।
3.   चुनाव में महिलाओं की भागीदारी।

एक विद्यार्थी एक से अधिक प्रतियोगिताओं में भाग ले सकता है, एक से अधिक विषयों पर स्‍लोगन चित्र तथा निबंध लिख सकता है। निबंध रूल्‍ड पेपर पर 1000 शब्‍दों या 4 पेज तक, स्‍लोगन ए-4 पेपर पर 4 से 6 पक्तियों में, चित्रकला एक चौथाई ड्रायंगशीट्स में लिखना है, अथवा बनाना है।
विद्यार्थी अपने चित्र, स्‍लोगन या निबंध के अंतिम/पीछे अपना नाम, विद्यालय नाम, टेलीफोन/मोबाइल नं अवश्‍य लिख दें। विद्यार्थी साइज/सीमा का ध्‍यान रखें।
प्राचार्य इन्‍हं बनवाकर दिनांक 09 जनवरी, 2017 तक पर्यटन भवन के रिसेप्‍शन पर या कार्यालय जिला शिक्षा अधिकारी, जबलपुर में जमा करें।

किसी भी जानकारी हेतु आप कार्यक्रम प्रभारी श्री उपेन्‍द्र कुमार यादव, (95166-92931, 9907680003) पर संपर्क कर सकते है।

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

“बेटी पढाओ : बेटी बचाओ” का सूत्रपात किया था सावित्री बाई फुले ने : संजय गर्ग




3 जनवरी 1831 को आज से 186 साल पहले महिला शिक्षा के लिए बालिका स्कूल खोलने वाली महिला  सावित्री बाई फुले का जन्म श्री खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी देवी के घर हुआ था. ये वो दौर था जब बेटियों और महिलाओं को शिक्षा दीक्षा से दूर रखा जाता था . सावित्री बाई फुले ने उसी दौर में समाज के घोर निराशाजनक व्यवहार के बीच 1848 में बालिकाओं के लिए  स्कूल खोल कर “बेटी पढाओ : बेटी बचाओ” का सूत्रपात किया था !”
-                    तदाशय के विचार बाबी नाटक के निर्देशक एवं रंगकर्मी श्री संजय गर्ग ने    बालभवन में आयोजित बालसभा में किया. आज की विशेष बालसभा स्व. सावित्री बाई फुले के जीवन पर केन्द्रित थी. बालसभा के प्रारम्भ में बाल-अभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल ने स्व. सावित्री जी की जीवनी प्रस्तुत की. तदुपरांत बच्चों से उनके जीवन पर आधारित प्रश्नोत्तरी का सिलसिला देर तक चला .  इस अवसर पर अतिथि  रंगकर्मी  श्री दविंदर सिंह ने बालभवन द्वारा बालसभाओं के आयोजन को आज के समय के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण निरूपित करते हुए कहा-“बाल सभाओं के ज़रिये विषयों को समझाने और समझाने के प्रक्रिया बच्चों को सृजनशील बनाती हैं. आज़कल विद्यालयों में भी बालसभाओं का आयोजन लगभग बंद सा हो गया है.”
-                    बालसभा के आयोजन संयोजन सीनियर छात्रा कु. साक्षी गुप्ता ने किया जबकि आभार प्रदर्शन कुमारी पलक गुप्ता ने किया .

सावित्रीबाई फुले : जन्म दिवस



                             

     सावित्रीबाई फुले
 (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897)
                भारत की एक समाज सुधारिका एवं  मराठी  कवयित्री थीं ।
उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की । 
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था ।
सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की प्रथम कवियत्री के रूप में भी जाना जाता था ।
'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो कुछ लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब विद्यालय खोलना एक कठिन कार्य था.
महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में ।
निधन
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया । प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं । एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी  संक्रमण के कारण हुआ .
साभार :-  विकी पीडिया 



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