गुरुवार, 12 जनवरी 2017

सूर्य उपासना का पर्व है मकर संक्रांति -सरफ़राज़ ख़ान


भारत में समय-समय पर अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं. इसलिए भारत को त्योहारों का देश कहना गलत न होगा. कई त्योहारों का संबंध ऋतुओं से भी है. ऐसा ही एक पर्व है . मकर संक्रान्ति. मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्यौहार को मनाया जाता है. दरअसल, सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं. सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. यह इकलौता ऐसा त्यौहार है, जो हर साल एक ही तारीख़ पर आता है. दरअसल यह सौर्य कैलेंडर के हिसाब से मनाया जाता है. इस साल 28 साल के बाद मकर संक्रांति पर महायोग बन रहा है. 14 जनवरी को दोपहर 1.51 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा और सूर्य उत्तरायण हो जाएगा. मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है. इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग शाम होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि को तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति देते हैं. इस पर्व पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. देहात में बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. बच्चे तो कई दिन पहले से ही लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं. लोहड़ी पर बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.
यह त्यौहार सर्दी के मौसम के बीतने की ख़बर देता है. मकर संक्रांति पर दिन और रात बराबर अवधि के माने जाते हैं. इसके बाद से दिन लंबा होने लगता है और रातें छोटी होने लगती हैं. मौसम में भी गरमाहट आने लगती है.

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था. मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए है. 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है. संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है. उत्तराखंड के बागेश्वर में बड़ा मेला होता है. वैसे गंगा स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है.

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है. लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो. इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं.

बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं.

तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है.पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रांति पर भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

बॉबी नाटक : छोटे परिवारों की बड़ी समस्या का सजीव चित्रण

                                             मशहूर नाटक लेखक स्व. विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित कथानक पर आधारित बाल-नाटक "बॉबी" का निर्माण  संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा श्री संजय गर्ग के निर्देशन में तैयार कराया गया है. जिसकी दो प्रस्तुतियां भोपाल में दिसंबर माह में की जा चुकीं है.
                  बॉबी  नौकरी पेशा माता पिता की इकलौती बेटी है जिसे स्कूल से लौटकर आम बच्चों की तरह माँ की घर से अनुपस्थिति बेहद कष्ट पहुंचाने वाली महसूस होती है. उसे टीवी खेल पढने लिखने से अरुचि हो जाती है. स्कूली किताबों के पात्र शिवाजी, अकबर बीरबल, आदि से  उसे  घृणा होती है.   इतिहास के के इन पात्रों की कालावधि याद करना उसे बेहद उबाऊ कार्य लगता है. साथ ही बाल सुलभ रुचिकर पात्र मिकी माउस, परियां गौरैया से उसे आम बच्चों की तरह स्नेह होता है. और वह एक फैंटेसी में विचरण करती है.  शिवाजी, अकबर बीरबल,  से वह संवाद करती हुई वह उनको वर्त्तमान परिस्थियों की शिक्षा देती है तो परियों गौरैया मिकी आदि के साथ खेलती है. अपनी पीढा शेयर करती है... कि उसे माँ और पिता के बिना एकाकी पन कितना पीढ़ा दायक लगता है.
              बॉबी एक ऐसा चरित्र है जो हर उस परिवार का हिस्सा होता है जो माइक्रो परिवार हैं. जिसके माता पिता जॉब करतें हैं।  स्कूल से आने से लेकर शाम को माँ और पिता के लौटने तक वास्तविकता और स्वप्नलोक तक विचरण करने वाली बॉबी अपनी फैंटेसी  के बीच झूलती है. इस अंतर्द्वंद को बहुतेरे बच्चे झेलते हैं परंतु माता-पिता को इस स्थिति से बहुधा अनभिज्ञ रहते है।  बॉबी यानी श्रेया खंडेलवाल यह सिखाने समझाने में सफल रहीं।
             
                 
 महानगरों की तरह   अब  मध्य-स्तरीय शहरों तक  संयुक्त परिवार के बाद तेज़ी से परिवारों का छोटा आकार होने  लगे हैं  तथा  उससे बालमन पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रभावी तरीके से इस नाटक में उकेरा गया है.
            
               बालरंग निर्देशकों द्वारा बच्चों के ज़रिये ऐसे कथानक के मंचन का जोखिम  बहुधा काम ही उठाया होगा लेकिन संस्कारधानी के इस नाटक को देखकर अधिकांश दर्शकों की पलकें भीगी नज़र आईं थी   संस्कारधानी में बालरंग-कर्म की दिशा में कार्य करने वाले नाट्य-निर्देशक संजय गर्ग  एवम बालभवन जबलपुर के बालकलाकारों की कठिन तपस्या ही मानेंगे कि नाटक दर्शकों के मन को छूने की ताकत रख सका. 
                 मुख्य पात्र बॉबी के चरित्र को जीवंत बनाने में बालअभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल पूरे नाटक में गहरा प्रभाव छोड़तीं है. जबकि अकबर -प्रगीत शर्मा , बीरबल हर्ष सौंधिया, मिकी समृद्धि असाटी , शिवाजी -सागर सोनी, के अलावा पलक गुप्ता (गौरैया)  ने अपनी भूमिकाओं में प्रोफेशनल होने का आभास करा ही दिया।   इसके अलावा मानसी सोनी, मिनी दयाल, परियां- वैशाली बरसैंया, शैफाली सुहानी, आकृति वैश्य, आस्था अग्रहरी , रिद्धि शुक्ला, दीपाली ठाकुर, का अभिनय भी प्रभावी बन पड़ा था. 
                  नाटक की प्रकाश, ध्वनि एवम संगीत की ज़िम्मेदारी सुश्री शिप्रा सुल्लेरे सहित कु. मनीषा तिवारी , कुमारी महिमा गुप्ता,  के ज़िम्मे थी जबकि बाल गायक कलाकार - उन्नति तिवारी, श्रेया ठाकुर, सजल सोनी, राजवर्धन सिंह कु. रंजना निषाद, साक्षी गुप्ता, आदर्श अग्रवाल, परिक्षा राजपूत के गाये गीतों से नाटक बेहद असरदार बन गया था. 
      संभागीय बालभवन के संचालक ने बताया कि - "बच्चों से ऐसे विषय पर मंचन कराना बेहद कठिन काम है किन्तु निर्देशक  श्री संजय गर्ग इस नाटक के ज़रिए उन चुनिंदा लोगों में शुमार हो गए हैं जिनको भारत में ख्याति प्राप्त हुई है. भोपाल में समीक्षकों ने बॉबी नाटक को उत्कृष्ट बता कर पुनः  मंचन करा था."
                    कुल मिला कराकर नाट्य लोक संस्था द्वारा प्रस्तुत नाटक को श्रेष्ठ बाल नाटकों की  सूची में रखा जा सकता है.   

बुधवार, 4 जनवरी 2017

सातवां राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस आयोजन हेतु विविध प्रतियोगिताऍ एवं कार्यक्रम



            भारत निर्वाचन आयोग की पहल पर तथा राज्‍य निर्वाचन आयोग के समन्‍वय से 2011 से आयोजित राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस का सातवां आयोजन आगामी 25 जनवरी, 2017 को भारत निर्वाचन आयोग के स्‍थापना दिवस पर होगा।
          वर्ष 2017 राष्‍ट्रीय मतदाता दिवस की मुख्‍य थीम ''युवा एवं भावी मतदाताओं का सशक्तिकरण है। इस अवसर पर जबलपुर के समस्‍त शासकीय एवं अशासकीय, एम.पी.बोर्ड, सी.बी.एस.ई., आय.सी.एस.ई. हेतु विविध प्रतियोगिताऍ आयेाजित है।

निबंध लेखन - (किसी एक विषय पर)
1.   मजबूत लोकतंत्र में युवा एवं भावी मतदाताअें की भूमिका।
2.   नैतिक मतदान में भावी मतदाताओं की भूमिका।
3.   लोकतंत्र में महिलाअें तथा युवाओं का स‍शक्तिकरण ।

स्‍लोगन लेखन (किसी भी एक विषय पर)
1.   भावी मतदाता एवं सूचना प्रौ़द्योगिक का उपयोग।
2.   सुव्‍यवस्थ्ति मतदाता शिक्षा।
3.   निर्वाचक सहभागिता का चुनावी प्रबंधक में प्रयोग।
4.   नैतिक मतदान में भावी मतदाता की भूमिका।
चित्रकला प्रतियोगिता (किसी भी एक विषय पर)
1.   ई.व्‍ही.एम. मशीन तथा बी.वी.पी.ए.टी.
2.   आदर्श मतदान केन्‍द्र।
3.   चुनाव में महिलाओं की भागीदारी।

एक विद्यार्थी एक से अधिक प्रतियोगिताओं में भाग ले सकता है, एक से अधिक विषयों पर स्‍लोगन चित्र तथा निबंध लिख सकता है। निबंध रूल्‍ड पेपर पर 1000 शब्‍दों या 4 पेज तक, स्‍लोगन ए-4 पेपर पर 4 से 6 पक्तियों में, चित्रकला एक चौथाई ड्रायंगशीट्स में लिखना है, अथवा बनाना है।
विद्यार्थी अपने चित्र, स्‍लोगन या निबंध के अंतिम/पीछे अपना नाम, विद्यालय नाम, टेलीफोन/मोबाइल नं अवश्‍य लिख दें। विद्यार्थी साइज/सीमा का ध्‍यान रखें।
प्राचार्य इन्‍हं बनवाकर दिनांक 09 जनवरी, 2017 तक पर्यटन भवन के रिसेप्‍शन पर या कार्यालय जिला शिक्षा अधिकारी, जबलपुर में जमा करें।

किसी भी जानकारी हेतु आप कार्यक्रम प्रभारी श्री उपेन्‍द्र कुमार यादव, (95166-92931, 9907680003) पर संपर्क कर सकते है।

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

“बेटी पढाओ : बेटी बचाओ” का सूत्रपात किया था सावित्री बाई फुले ने : संजय गर्ग




3 जनवरी 1831 को आज से 186 साल पहले महिला शिक्षा के लिए बालिका स्कूल खोलने वाली महिला  सावित्री बाई फुले का जन्म श्री खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी देवी के घर हुआ था. ये वो दौर था जब बेटियों और महिलाओं को शिक्षा दीक्षा से दूर रखा जाता था . सावित्री बाई फुले ने उसी दौर में समाज के घोर निराशाजनक व्यवहार के बीच 1848 में बालिकाओं के लिए  स्कूल खोल कर “बेटी पढाओ : बेटी बचाओ” का सूत्रपात किया था !”
-                    तदाशय के विचार बाबी नाटक के निर्देशक एवं रंगकर्मी श्री संजय गर्ग ने    बालभवन में आयोजित बालसभा में किया. आज की विशेष बालसभा स्व. सावित्री बाई फुले के जीवन पर केन्द्रित थी. बालसभा के प्रारम्भ में बाल-अभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल ने स्व. सावित्री जी की जीवनी प्रस्तुत की. तदुपरांत बच्चों से उनके जीवन पर आधारित प्रश्नोत्तरी का सिलसिला देर तक चला .  इस अवसर पर अतिथि  रंगकर्मी  श्री दविंदर सिंह ने बालभवन द्वारा बालसभाओं के आयोजन को आज के समय के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण निरूपित करते हुए कहा-“बाल सभाओं के ज़रिये विषयों को समझाने और समझाने के प्रक्रिया बच्चों को सृजनशील बनाती हैं. आज़कल विद्यालयों में भी बालसभाओं का आयोजन लगभग बंद सा हो गया है.”
-                    बालसभा के आयोजन संयोजन सीनियर छात्रा कु. साक्षी गुप्ता ने किया जबकि आभार प्रदर्शन कुमारी पलक गुप्ता ने किया .

सावित्रीबाई फुले : जन्म दिवस



                             

     सावित्रीबाई फुले
 (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897)
                भारत की एक समाज सुधारिका एवं  मराठी  कवयित्री थीं ।
उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की । 
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था ।
सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की प्रथम कवियत्री के रूप में भी जाना जाता था ।
'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो कुछ लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब विद्यालय खोलना एक कठिन कार्य था.
महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में ।
निधन
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया । प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं । एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी  संक्रमण के कारण हुआ .
साभार :-  विकी पीडिया 



सोमवार, 2 जनवरी 2017

प्रगल्भ प्रतियोगिता में संभागीय बालभवन के बच्चों ने जीते सर्वाधिक पुरस्कार


         
 शासकीय केन्द्रीय ग्रंथालय व संभागीय बाल भवन के विशेष सहयोग मार्गदर्शन एवं  सोशल एक्टिविस्ट व लेखक अनुराग त्रिवेदी एहसास के संयोजन में चार विधाओं में चलने वाली प्रतियोगिता –“ प्रगल्भ प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य था  सृजनात्मक बाल प्रतिभाओं की क्षमता का संवर्धन एव कला में  मौलिकता को निखारना था जिसके लिये भिन्न भिन्न प्रयोगों का सहारा लिया गया  जैसे गायन विधा सभी प्रतिभागियों की ज़िम्मेदारी थी कि वे जबलपुर अथवा मध्यप्रदेश के  साहित्यिक मनीषियों के लिखे गीतों को चुनें ।  इस प्रयोग से   जबलपुर के  साहित्यनुरागीयों एवम  सृजनधर्मियों में   प्रतियोगिता को अनूठा निरूपित किया  मुख्य अतिथि चन्द्रशेखर ने कहा कल्पना से अधिक अच्छा कार्यक्रम हुआ है इस तरह का यह प्रयोग बच्चों की सृजनात्मक क्षमता को बढाने के साथ उनके बोद्धिक स्तर पर भी अच्छा प्रभाव डालेगी। अनूठे इस प्रयास को ऐसे ही निरंतर करते रहें और प्रयास करें कि सभी संस्कारधानी के लोग सारस्वत अनुष्ठान से जुडें और संयोजन  मे मदद करें।“ 
चित्रकला विधा के पूर्व  प्रतिभागियों को 12 मिनट की कहानी सुनाई गई । दो घंटे का समय दिया गया कि
प्रतिभागी अपने ब्रशों से मन के भावों को चित्र में उभारें। निर्णायक श्रीमती मीनल ज़रगर, राजेश त्रिवेदी अरुणकांत पांडे ।

लेखन विधा में युवा चित्रकार शुभमराज अहिरवार (बाल श्री पुरस्कार विजेता) ,   द्वारा बनाया चित्र रखा गया जिसे देखकर 70 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.  
थियेटर : इस प्रतियोगिता में प्रत्येक प्रतिभागी  रंगकर्मी को किसी ऐतिहासिक चरित्र अथवा घटना, या सामाजिक चरित्र को  5 मिनट में मंच पर सजीव करना था।  
                             
प्रतियोगिताओं में अतिथि के रूप में जबलपुर नगर की विशिष्ठ हस्तियां उपस्थित रहीं जिनमे   संगीतकार  श्रीमती तापसी नागराज, श्री मुरलीधर नागराज , श्री  सिद्दार्थ गोतम, विवेकचतुर्वेदी  वरिष्ठ चित्रकार कामता सागर, वरिष्ठ चित्रकार सुरेश श्रीवास्तव, आशुतोष असर, मनीष तिवारी,सोहन सलिलराघवेन्द्र द्विवेदी डा आस्था बिल्लोरे (जयपुर) की उपस्थिति विशेष उपलब्धि रही. 

कार्यक्रम  सफलता पूर्वक संचालन- अनुभूति द्विवेदी, प्रगति पांडेगरिमा शुक्ला, वाणी गुप्ता ने किया और दिव्या गुप्ता राहुल मिश्रा रवि विशाल पंकज गुप्ता राजेश अवतार आनंद धनजय सुमित ने किया।
                          
                   कार्यक्रम को ग्रंथालय और एवम  बालभवन से हर सम्भव सहयोग दिया ग्रंथपाल हर्षिता डेविड,  विरेन्द्र पटेल,   , तृप्ति गोखले, शिप्रा सुल्लेरे, सोमनाथ सोनी, इन्द्र पांडे, मनीषा तिवारी, दुर्गेश यादव, अमित जाट, श्रीमती  विजयलक्ष्मी अय्यर,श्रीमती मीना  सोनी मेडम,अरुण तिवारीटेकराम जी, सीता देवी और प्रवीण यादव का प्रभावी सहयोग रहा 


बुधवार, 21 दिसंबर 2016

बालभवन जबलपुर में कार्यशाला एवं ऑडिशन


प्रगल्भ प्रतियोगिता हेतु ऑडिशन  दिनांक 22.12.2016 को 
संभागीय बालभवन जबलपुर  एवं शासन केद्रिय गंथालय के तत्वाधान में दिनांक 29 से 31 दिसंबर तक चलने वाली प्रगल्भ प्रतियोगिताओं में गायन हेतु आडीशन दिनांक 22.12.2016 प्रातः 2 बजे से  शाम 5 बजे तक संभागीय बाल भवन  परिसर  गढ़ाफाटक जबलपुर में आयोजित है।
समूहगान एवं एकलगान के प्रतिभागी  अंतिम चयन हेतु  हिस्सा ले सकते है । आयुवर्ग 5 से 14 ,15 से 18 एवं 19 से 80  तक के प्रतिभागी संभागीय बाल भवन में प्रातः 2 बजे के पूर्व तक पंजीयन करा सकते है । आडीशन में केवल गैर फिल्मी, स्थानीय अथवा प्रदेश के गीतकारों के गीत ही मान्य होगें। तदाशय की जानकारी देते हुए श्री अनुराग  त्रिवेदी संयोजक प्रगल्भ प्रतियोगिता 2016 ने बताया कि प्रतियोगिता हेतु वाटसएप नम्बर 9424925817 पर नाम  भी दिया जा सकता है। पंजीयन प्रतियोगिता पूर्णतः निशुल्क है।


टेक्सटाइल्स प्रिंटिग की परंपरागत एवं आधुनिक विधियों की कार्यशाला 24 दिसंबर 16 को

संभागीय बाल भवन एवं आसुरेट संस्था के संयुक्त तत्वाधान में बेटी बचाओं  बेटी पढ़ाओं  अंर्तगत म.प्र. संस्कृतिक संचालनालय भोपाल के सहयोग से 24 दिसंबर 2016 को प्रातः 10 बजे से  टेक्सटाइल्स प्रिंटिग में परंपरागत एवं आधुनिक कलात्मक विधियों  के प्रयोग पर केन्द्रित एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें भाग लेने हेतु अपना नाम संचालक बालभवन जबलपुर  में इच्छुक बालिकाऐं एवं गृहणियां  23 .11.2016 तक दर्ज करा सकेंगी ।
प्रेषक :- 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

My window [poetry by Beenash Khan]

My window is a  flight to might 
when birds fly high above the sky 
window is open everyday
enlightens the destiny when reaches the sun's ray 
window is made of glass 
through that you can see your garden grass 
my window is very nice
I sit on it , study which makes me wise

  Beenash Khan

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

जबलपुर बालभवन की श्रेया और अभय को राष्ट्रीय बालश्री एवार्ड 2015

जबलपुर के खाते में 2015 के दो बालश्री एवार्ड
जबलपुर बालभवन की श्रेया और अभय के साथ छिंदवाडा की फातिमा खान  ने श्रेष्ठता साबित की, बालभवन की सतत गतिविधियों की वजह से मिली सफलताएं
                 श्रेया को  थियेटर एवं अभय को मूर्तिकला का राष्ट्रीय बाल श्री अवार्ड मिला राष्ट्रीय बालश्री चयन प्रक्रिया  2015 में जबलपुर बालभवन के मास्टर अभय को मूर्तिकला के लिए राष्ट्रीय सम्मान हेतु चुना गया है। जबकि बेबी श्रेया खंडेलवाल को अभिनय के लिए राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान से अलंकृत किया जायेगा।
                   मास्टर अभय सोधिया के पिता श्री कैलाश सौंधिया प्राईवेट संस्थान में कार्यरत है। मध्यम वर्गीय परिवार से संबंधित  अभय फाइन आर्ट कालेज के प्रथम वर्ष का विद्यार्थी है अभय  इस सम्मान को पाकर बेहद उत्साहित है उनका कहना है कि वे बालभवन में बिताये 6 वर्षें को अमूल्य दिन मानते हैं उनका कहना है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मूर्ति कला को आगे ले जावेगें अपनी सफलता का श्रेय बालभवन एवं अपनी गुरू श्रीमति रेनु पांडे को देते है .  साथ  मातापिता के सर्पोट के बिना यह उपलब्धि  संभव ही न थी  यह सम्मान वे अपनी माता शोभना सौंधिया को  समर्पित करते है ।“

                   बेबी श्रेया खंडेलवाल बालभवन की ऐसी बहुमुखी प्रतिभा  है  जो नृत्य गायन अभिनय एवं संभाषण कला में प्रवीण है । श्री विकास खंडेलवाल एवं श्रीमति अर्चना  खंडेलवाल की पुत्री श्रेया स्मालवंडर स्कूल में 8 वीं कक्षा की छात्रा है। कु. श्रेया अब तक विवेचना, रंगमंडल के नाटकों  तथा संभागीय बाल भवन के बॉबी नाटक में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी है ।
                   श्रेया अपनी मां अर्चना खंडेलवाल जी के सपनों को साकार करने की कोशिश कर रही है। स्मरण हो कि श्री मुकेश नारायण अग्रवाल द्वारा निर्देशित फिल्म हरपल है यहां धोखा में प्रत्यूषा बेनर्जी के बचपन का रोल निभा रहीं है । श्रेया आगे चलकर एक सफल अभिनेत्री एक अच्छी नागरिक बनना चाहती है ।




                   छिंदवाडा  से बाल श्री के लिए चयनित मिराज फातिमा खान जबलपुर बालभवन द्वारा ही नामांकित की गयी प्रतिभागी है।  संभागीय बालभवन जबलपुर इस उपलब्धि के लिए संचालक जवाहर बालभवन भोपाल श्री मति तृप्ति त्रिपाठी एवं संयुक्त संचालक सुश्री सीमा शर्मा उपसंचालक श्रीमति मनीष लुम्बा ने प्रतिभागियों को बधाईयां दी है । संचालक बालभवन ने कहा कि यह उपलब्धि संभागीय बालभवन के सभी स्टाफ एवं समस्त अविभावकों की उपलब्धि है ।

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