कविता : बालभवन
बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे - वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं *************** चहल-कदमी , शरारत शोरगुल से भरा आँगन नृत्यशाला में मस्ती भरा वो झूमता बचपन कुछेक मिट्टी सने करबद्ध नमस्ते करते हैं मुझको – कोई कहता है – नहीं आया ! वो बुखार है उसको । वो आते हैं लुभा लेते हैं मुसकुराते हैं – जनम दिन पर साथ वो टॉफी के आते हैं .... बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे - वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं *************** अंकित काँपता था सुना जब यहाँ आया किसी को था पसंद पर किसी को न था वो भाया उसके कांपते हाथों ने प्रतिमाएँ गढ़ीं थी – कुछेक जर्जर मिलीं कुछ ले गया वो जो उसने गढ़ीं थीं दिव्यचक्षु कुछ बालिकाएँ सुर साधने आतीं – ये भी कह जातीं हैं कैसे ! हम जीत पाते हैं ... बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे - वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं ***************