कविता : बालभवन
बड़े
रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे -
वो
जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं
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चहल-कदमी, शरारत शोरगुल से भरा आँगन
नृत्यशाला
में मस्ती भरा वो झूमता बचपन
कुछेक
मिट्टी सने करबद्ध नमस्ते करते हैं मुझको –
कोई
कहता है – नहीं आया ! वो बुखार है उसको ।
वो
आते हैं लुभा लेते हैं मुसकुराते हैं –
जनम
दिन पर साथ वो टॉफी के आते हैं ....
बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे
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वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते
हैं
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अंकित
काँपता था सुना जब यहाँ आया
किसी
को था पसंद पर किसी को न था वो भाया
उसके
कांपते हाथों ने प्रतिमाएँ गढ़ीं थी –
कुछेक
जर्जर मिलीं कुछ ले गया वो जो उसने गढ़ीं थीं
दिव्यचक्षु
कुछ बालिकाएँ सुर साधने
आतीं –
ये
भी कह जातीं हैं कैसे ! हम जीत पाते हैं ...
बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे
-
वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते
हैं
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