सोमवार, 13 जुलाई 2015

कविता : बालभवन


बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे -
वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं
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चहल-कदमी, शरारत शोरगुल से भरा आँगन
नृत्यशाला में मस्ती भरा वो झूमता बचपन
कुछेक मिट्टी सने करबद्ध नमस्ते करते हैं मुझको –
कोई कहता है – नहीं आया ! वो बुखार है उसको ।
वो आते हैं लुभा लेते हैं मुसकुराते हैं –
जनम दिन पर साथ वो टॉफी के आते हैं ....
बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे -
वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं
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अंकित काँपता था सुना जब यहाँ आया
किसी को था पसंद पर किसी को न था वो भाया
उसके कांपते हाथों ने प्रतिमाएँ गढ़ीं थी –
कुछेक जर्जर मिलीं कुछ ले गया वो जो उसने गढ़ीं थीं
दिव्यचक्षु कुछ बालिकाएँ   सुर  साधने  आतीं –
ये भी कह जातीं हैं कैसे ! हम जीत पाते हैं ...
बड़े रौनक भरे होते हैं मासूमों के चेहरे -
वो जब गीत गाते हैं या फिर ब्रश चलाते हैं
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