तारसप्तक से बंधे बाल कलासाधक

                 जबलपुर 7 /12/15
बाल भवन जबलपुर एवं स्पिकमैके के संयुक्त तत्वावधान में बाल भवन के बच्चों के लिए आयोजित कार्यक्रम में श्रीमती श्रुति अधिकारी के संतूर वादन का कार्यक्रम आयोजित किया गया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथि कलाकार ने दीप-प्रज्जवलन किया तथा उनका स्वागत तबलावादक कुमारी मनु एवं बाल साहित्यकार कुमारी नीति शर्मा ने श्रीमति श्रुति अधिकारी एवं अतिथि संगतकार श्री परिवेश चौधरी का पुष्प-गुच्छ भेंट कर स्वागत किया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में शास्त्रीय संगीत के महत्व तथा शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त होने वाले वाद्यों की जानकारी दी तदुपरान्त सामूहिक रूप से संतूर की धुन पर वंदे मातरम का गायन हुआ । साथ ही विभिन्न रागों पर आधारित संतूर वादन प्रस्तुत किया गया । संयोजक संस्था प्रमुख श्रीमती अंजली पाठक ने बताया बाल-भवन के साथ सदैव ही हमारे अतिथि कलाकारों के अनुभव उल्लेखनीय रहे । बालाभवन के साथ ऐसे कार्यक्रम सतत रूप से जारी रहेंगे । गिरीश बिल्लोरे संचालक बाल-भवन ने महिला सशक्तिकरण विभाग की ओर से  “स्वागतम-लक्ष्मी” कार्यक्रम के तहत अतिथि कलाकार को सम्मान पत्र भेंट किया गया ।
             बालभवन के बच्चों ने अतिथि कलाकार से प्रश्नोत्तर भी किए गए । कार्यक्रम में श्री श्री इंद्र पाण्डेय, श्री देवेंद्र यादव, श्रीमाती रेणु पाण्डेय, श्री सोमनाथ सोनी, सुश्री शिप्रा सुल्लेरे, श्री देवेन्द्र यादव एवं  श्री टी आर डेहरिया का अवदान उल्लेखनीय रहा है ।   
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कलाकार - श्रीमती श्रुति अधिकारी
पति - श्री दीपन अधिकारी थियेटर आर्टिस्ट  
पुत्र -  निनाद अधिकारी जवाहर बाल भवन के छात्र रहे हैं तथा बाल-श्री विजेता भी हैं ।
गुरु - पद्मश्री प्रसिद्ध संतूर वादक शिवकुमार शर्मा से संतूर वादन की बारीकियां सीखीं ।
           उन्हें सुरमणि, समता प्रतिभा, सुरकला साधना आदि सम्मान प्राप्त हैं । भोपाल  की श्रुति जी ने देश विदेश में  अनेकानेक प्रस्तुतियाँ दी हैं ।
   संतूर – मूलत: काश्मीर से संबन्धित वाद्य है । इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था यह भी माना जाता है कि संतूर की उत्पत्ती लगभग 1800 वर्षों  से भी पूर्व ईरान  में मानी जाती है बाद में यह एशिया   के कई अन्य देशों में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति  के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए ।  संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं । एक सुर से मिलाये गये  के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 100 होती है । आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है । यद्यपि  वेदों में इस वाद्ययंत्र का ज़िक्र है । 
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