माँ कहती थी आ गौरैया कनकी चांवल खा गौरैया

फुदक चिरैया उड़ गई भैया
माँ कहती थी आ गौरैया
कनकी चांवल खा गौरैया
         उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

पंखे से टकराई थी तो
         काकी चुनका लाई थी  !
दादी ने रुई के फाहे से
बूंदे कुछ टपकाई थी !!
होश में आई जब गौरैया उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

गेंहू चावल ज्वार बाजरा
पापड़- वापड़, अमकरियाँ ,
पलक झपकते चौंच में चुग्गा
भर लेतीं थीं जो चिड़ियाँ !!
चिकचिक हल्ला करतीं  थीं - आँगन आँगन गौरैया ...!!

जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!

हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा  भी  गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
न तो घर में रौनक बाक़ी, न आंगन में गौरैया ...!!

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

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