लीची के गुच्छे लाया है !! श्री रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, उत्तराखंड
हरी, लाल और पीली-पीली !
लीची होती बहुत रसीली !!
गायब बाजारों से केले ।
सजे हुए लीची के ठेले ।।
आम और लीची का उदगम ।
मनभावन दोनों का संगम ।।
लीची के गुच्छे हैं सुन्दर ।
मीठा रस लीची के अन्दर ।।
गुच्छा प्राची के मन भाया !
उसने उसको झट कब्जाया !!
लीची को पकड़ा, दिखलाया !
भइया को उसने ललचाया !!
प्रांजल के भी मन में आया !
सोचा इसको जाए खाया !!
गरमी का मौसम आया है !
लीची के गुच्छे लाया है !!
दोनों ने गुच्छे लहराए !
लीची के गुच्छे मन भाए !!
- श्री रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, उत्तराखंड
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