नन्ही चिड़िया

नन्हें - नन्हें पंखों से वह ,
उड़ती है उस आसमान में
उसे घूमता-फिरता देख,
बस जाती वह मेरे मन में.
रोज सवेरे वह जग जाती ,
फिर धीरे से हमें उठाती.
हर दम वह चिक-चिक करती है,
लेकिन कभी ना तंग करती है .
पेड़ों की डालों में रहता ,
है उसका इक नन्हा घर.
अपने चूज़ों को वह उसमें,
देती है दानें लाकर.
अपने बच्चों को , सिखाती
कैसे है जीना इस जग में.
फिर धीरे से उन्हें सिखाती,
उड़ना है उस आसमान में.
जीने का अधिकार इन्हें भी
फिर क्यों इन्हें भगाते हैं .
उड़ जाती हैं जब आँगन से,
आँगन सूने पड़ जाते हैं .
यदि अलोप हो गए ये पक्षी,
तो क्या अगली पीढ़ी को तुम,
चित्रों से दशाॆओगे और
आसमान की यह कहानी
क्या इतिहास बनाओगे?
            - उन्नति तिवारी

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